कुम्भपर्व और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य

Authors(1) :-डॉ. सुधीर कुमार पाण्डेय

भारतीय संस्कृति मुक्ति मार्गी है । कुंभ स्नान प्रायश्चित का साधन है. इससे पिछले पाप कर्मों से मुक्ति मिलती है. अग्निपुराण में अग्निदेव ने कहा है- यह तीर्थ भोग और मोक्ष दोनों का प्रदाता है। प्रयाग में वेद और यज्ञ मूर्तिमान हैं, अतः इसका नाम स्मरण करने और यहाँ की मिट्टी लेने से जीव पापमुक्त हो जाता है। प्रयाग के संगम क्षेत्र में किये गये दान-पुण्य आदि से अक्षयफल की प्राप्ति होती है। यहाँ पर प्राण त्याग, वेद और लोक वचनों से अधिक महत्वपूर्ण हैं। प्रयाग को साठ करोड़ तीर्थों का सान्निध्य प्राप्त होता है, इसीलिये यह सर्वश्रेष्ठ तीर्थ हैं।

Authors and Affiliations

डॉ. सुधीर कुमार पाण्डेय
सहायक आचार्य (संस्कृत), बाबा बरुआदास पी.जी. कॉलेज, परुइया आश्रम, अम्बेडकरनगर, उत्तर प्रदेश।

कुम्भ,मुक्ति, सांस्कृतिक, संगम, प्रयाग, अक्षयफल, पापमुक्त, मूर्तिमान, भारतीय संस्कृति।

  1. . प्रयाग-कुंभ-रहस्य, में इसका अर्थ क्षेमकरणदास त्रिवेदी ने इस प्रकार किया हैरू समय के प्रयाग से धर्मात्मा लोग अनेक सम्पत्तियों के साथ सद्मति प्राप्त करते हैं। वह महाप्रबल सब स्थानों में परमात्मा के सामर्थय के बीच वर्तमान है, उसकी महिमा को बुद्धिमान जानते हैं। वहीँ शास्त्री जी ने इसको इस रूप में प्रस्तुत किया है- हे संतगण! पूर्ण कुंभ उस समय पर (बारह वर्षाे के बाद) आया करता है जिसे हम अनेक बार प्रयागादि तीर्थाे में देखा करते हैं। कुंभ उस समय को कहते हैं जो महान आकाश में ग्रह राशि आदि के योग से होता है।
  2. .“आत्मसंस्कृतिर्वाव, एतै सृजमान आत्मानं संस्कुरुते” -  ऐतरेय ब्राह्मण 6 / 5 / 1
  3. .प्रयाग क्षेत्र ही दुर्गम, मजबूत और सुंदर गढ़ (किला) है, जिसको स्वप्न में भी (पाप रूपी) शत्रु नहीं पा सके हैं। संपूर्ण तीर्थ ही उसके श्रेष्ठ वीर सैनिक हैं, जो पाप की सेना को कुचल डालने वाले और बड़े रणधीर हैं- रामचरित मानस
  4. .अध्याय 107/3
  5. .अध्याय 108/3-4
  6. .अध्याय 108/6
  7. .महोपनिषद 6/71-75
  8. .सचिव सत्य श्रद्धा प्रिय नारी। माधव सरिस मीतु हितकारी।।
  9. चारि पदारथ भरा  भँडारू। पुन्य प्रदेस  देस  अति  चारू।।रामचरित
  10. .मानस मानस, अयोध्या कांड 103-105
  11. .कुम् = भुवम् उम्भतीति कुम्भाः = कलशाः
  12. .कूर्म पूरण 1/ 12-20,24-28
  13. .देवानां द्वादशैर्भिर्मत्यै द्वादश वत्सरैरू जायन्ते कुम्भ पर्वाणि तथा द्वादश संख्यया।
  14. .हरिद्वार में कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति कुंभ राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है। नासिक में कुंभ मेला तब लगता है, जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं। इसलिए इसे सिंहस्थ भी कहते हैं। उज्जैन में कुंभ मेला तब आयोजित होता है, जब बृहस्पति सिंह राशि में और सूर्य मेष राशि में होते हैं। इसलिए इसे सिंहस्थ भी कहते हैं।
  15. प्रत्येक तीन वर्ष में उज्जैन को छोड़कर अन्य स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है। हरिद्वार प्रयाग में दो कुंभ पर्वों के बीच छह वर्ष के अंतराल में अर्धकुंभ का आयोजन होता है।
  16. प्रत्येक 12 वर्ष में पूर्णकुंभ का आयोजन होता है। जैसे उज्जैन में कुंभ का अयोजन हो रहा है, तो उसके बाद अब तीन वर्ष बाद हरिद्वार, फिर अगले तीन वर्ष बाद प्रयाग और फिर अगले तीन वर्ष बाद नासिक में कुंभ का आयोजन होगा। उसके तीन वर्षबाद फिर से उज्जैन में कुंभ का आयोजन होगा। इसी तरह जब हरिद्वार, नासिक या प्रयागराज में 12 वर्ष बाद कुंभ का आयोजन होगा तो उसे पूर्णकुंभ कहेंगे। हिंदू पंचांग के अनुसार देवताओं के बारह दिन अर्थात मनुष्यों के बारह वर्ष माने गए हैं इसीलिए पूर्णकुंभ का आयोजन भी प्रत्येक बारह वर्ष में ही होता है।
  17. मान्यता के अनुसार प्रयागराज में प्रत्येक 144 वर्षों में महाकुंभ का आयोजन होता है। 12 का गुणा 12 में करें तो 144 आता है। दरअसल, कुंभ भी बारह होते हैं जिनमें से चार का आयोजन धरती पर होता है शेष आठ का देवलोक में होता है।; इसी मान्यता के अनुसार प्रत्येक 144 वर्ष बाद प्रयागराज में महाकुम्भ का आयोजन होता है जिसका महत्व अन्य कुम्भ की अपेक्षा और बढ़ जाता है। सन् 2013 में प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन हुआ था क्योंकि उस वर्ष पूरे 144 वर्ष पूर्ण हुए थे। संभवतरू अब अगला महाकुंभ 138 वर्ष बाद आएगा।
  18. सिंहस्थ का संबंध सिंह राशि से है। सिंह राशि में बृहस्पति एवं मेष राशि में सूर्य का प्रवेश होने पर उज्जैन में कुंभ का आयोजन होता है। यह योग प्रत्येक 12 वर्ष पश्चात ही आता है। इसी तरह का योग नासिक में भी होता है अतरू वहां भी सिंहस्थ का आयोजन होता है। दरअसल, उज्जैन में 12 वर्षों के बाद ही सिंहस्थ का आयोजन होता है। इस कुंभ के कारण ही यह धारणा प्रचलित हो गई की कुंभ मेले का आयोजन प्रत्येक 12 वर्ष में होता है, जबकि यह सही नहीं है। यह मेला उज्जैन को छोड़कर बाकी के तीननगरों में क्रमवार तीन तीन वर्षों में ही आयोजित होता है। वर्तमान में प्रयागराज में अर्ध कुंभ चल रहा है।
  19. .वाल्मीकीय रामायण -अयोध्याकाण्ड सर्ग 54 श्लोक 22
  20. .वाल्मीकीय रामायण -अयोध्याकाण्ड सर्ग 54, श्लोक 34
  21. .अग्निपुराण, पूर्वार्धखण्ड, अध्याय 111 / 1,6,7,8,9
  22. .महाभारत तीर्थयात्रा पर्व (वन पर्व)
  23. .पापों के समूहरूपी हाथी के मारने के लिए सिंह रूप प्रयागराज का प्रभाव (माहात्म्य) कौन कह सकता है। ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र रघुकुल श्रेष्ठ राम ने भी सुख पाया। रामचरित मानस ।

Publication Details

Published in : Volume 7 | Issue 5 | September-October 2024
Date of Publication : 2024-10-20
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 72-78
Manuscript Number : SHISRRJ24774
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. सुधीर कुमार पाण्डेय, "कुम्भपर्व और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 7, Issue 5, pp.72-78, September-October.2024
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ24774

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