Manuscript Number : SHISRRJ258212
रत्नप्रकाश टीका के आलोक में “स्वादिष्वसर्वनामस्थाने” सूत्रविचार
Authors(1) :-सोहन आर्य प्रस्तुत शोध पत्र में शोधार्थी ने रत्नप्रकाश टीका के अनुसार स्वादिष्वसर्वनामस्थाने सूत्र पर विचार प्रस्तुत किया है। रत्नप्रकाशकार ने सर्वप्रथम असर्वनामस्थान पद पर विचार करते हुए पर्युदास एवं प्रसज्य नामक दो प्रकार के नञ् पर विचार किया है। प्रकृत पद में प्रसज्य प्रतिषेध मानते हुए उसमें आने वाले दोषों का निवारण करते हुए इस पद में पर्युदास प्रतिषेध को स्वीकार किया है तथा तत्पश्चात् सूत्र में योग विभाग करते हुए स्वादिषु एवं असर्वनामस्थाने ऐसा योग विभाग करते हुए “अनन्तरस्य विधिर्वा भवति प्रतिषेधो वा” इस परिभाषा के आधार पर प्रकृत पद में प्रसज्य प्रतिषेध को भी सिद्ध किया है।
सोहन आर्य रत्नप्रकाश, सूत्र, प्रसज्यप्रतिषेध, पर्युदासपरक, व्याकरणशास्त्र। Publication Details Published in : Volume 8 | Issue 2 | March-April 2025 Article Preview
सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, डीपीबीएस कॉलेज अनूपशहर
Date of Publication : 2025-03-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 19-23
Manuscript Number : SHISRRJ258212
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ258212