Manuscript Number : SHISRRJ258220
नेपथ्य राग में गूंजती स्त्री की स्वर: एक विमर्शधर्मी पुनर्पाठ
Authors(1) :-शुभस्मिता पाणिग्राही
मीरा कान्त का नाटक "नेपथ्य राग"स्त्री चेतना, अस्मिता और आत्मसम्मान के हनन काएक मौन प्रतिरोधहै। यह नाटक प्रतिरोध को आक्रोश के माध्यम से नहीं, बल्किमौन शक्तिके द्वारा अभिव्यक्त करता है।यह नाटक स्त्री कीमनोवैज्ञानिक स्थितिको समझते हुए उसकीसामाजिक, सांस्कृतिकऔरपारंपरिक विडंबनाओंको उजागर करता है। इन्हीं विडंबनाओं के बीच, 'खना' नामक पात्र यह दर्शाती है कि एक स्त्री कैसे नेपथ्य (पृष्ठभूमि) से बाहर निकलकर मंच पर बैठीपुरुष सत्ताको चुनौती देती है और स्वयं को स्थापित करती है।यह नाटक समय के बदलते चक्र के साथ-साथ पुरुष सत्ता केचेहरेको भी उजागर करता है — यह दिखाता है कि हज़ारों वर्ष पूर्व जो स्त्री की अभिव्यक्ति को दबाने वाली सोच थी, वही सोच आज भी कुछ पुरुषों और पितृसत्तात्मक प्रवृत्तियों में जीवित है। यह दमित और शोषक मानसिकता आज भी स्त्री की स्वतंत्रता और पहचान को नियंत्रित करने का प्रयास करती है।
शुभस्मिता पाणिग्राही
नेपथ्य, जिह्वाहिन, संघर्ष, आत्मसम्मान, बिदुषी, महत्वाकांक्षी, द्वीप, मंच, पुरुष सत्ता, चेतन, अग्निपरीक्षा, अभिव्यक्ति। Publication Details Published in : Volume 8 | Issue 2 | March-April 2025 Article Preview
शोधार्थी, हिन्दी विभाग, गुजरात केन्द्रीय विश्वविध्यालय।
Date of Publication : 2025-04-12
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 89-94
Manuscript Number : SHISRRJ258220
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ258220