गीताञ्जलि: गीतिकाव्य में राष्ट्रिय चेतना का शंखनाद

Authors(1) :-डॉ. रश्मि यादव

संस्कृत-साहित्य की उत्कृष्ट रचनाधर्मिता आदिकाल से आज तक निरन्तर प्रवाहमान एवं जीवन्त बनी हुई है। आधुनिक संस्कृत साहित्यकार पद्मश्री डॉ0 कपिलदेव द्विवेदी ने राष्ट्रिय-चेतना एवं राष्ट्रप्रेम से ओतप्रोत अपनी कृति गीताञ्जलि: में राष्ट्रिय-चेतना, सर्वोदय, पर्यावरण, आतंकवाद एवं संस्कृत भाषा के गौरव जैसे विषयों को गीत के माध्यम से अभिव्यक्त करते हुए राष्ट्रहित में बीस सूत्री कार्यक्रम की रूपरेखा प्रस्तुत की है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रहे कपिलदेव द्विवेदी काराष्ट्र-प्रेम उनके गीतों में प्रस्फुटित हुआ है। राष्ट्र को समर्पित उनके गीत प्रबुद्ध जनों तक पहुँचकर राष्ट्रिय भाव को उद्वेलित करने में समर्थ हैं। गीताञ्जलिःमें गीतों को सात भागों में विभक्त किया गया है। प्रथम भाग में भक्ति भाव से सम्पृक्त गीत आबद्ध हैं। द्वितीय भाग में मातृवन्दना और तृतीय भाग में धर्मपरक गीत हैं। चतुर्थ भाग में राष्ट्रिय और सामाजिक विषयों के गीत,पञ्चम भाग में महापुरुषों के जीवन पर आधारित गीत, षष्ठ भाग में प्रकृतिपरक और अन्तिम सप्तम भाग में विभिन्न विषयों से संबंधित गीत संकलित किये गये हैं। इस गीतिकाव्य के अनेक गीतों में राष्ट्रप्रेम एवं राष्ट्र के प्रति उत्सर्ग का पवित्र भाव अनुस्यूत है।

Authors and Affiliations

डॉ. रश्मि यादव
सहायक आचार्य, संस्कृत, पालि, प्राकृत एवं प्राच्य भाषा विभाग इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उ0प्र0।

भारत, राष्ट्र-वन्दन, देशप्रेम, सर्वोदय, आतंकवाद, प्रदूषण।

  1. यत्र वेदध्वनिः पापसंहारकः, यत्र शास्त्रादिचर्चा मनोमोहनी।
  2. यत्र वेदान्तविद्या सुधादायिनी, भारतं तं नुमो भारतं तं नुमः।। गीताञ्जलिः, भारतं तं नुमो भारतं तं नुमः,श्लोक-1
  3. यत्र सत्यं शिवं सुन्दरं राजते, यत्र धर्मार्चना वीरपूजा सदा।
  4. यत्र विश्वं कुटुम्बं मतं श्रेयसे, भारतं तं नुमो भारतं तं नुमः ।। वही, श्लोक-2
  5. ईशावास्योपनिषद् 6
  6. देशस्य रक्षा जनता-समृद्धिः परोपकाराश्रयणेन वृत्तिः।
  7. परार्थचिन्ता पतितानुरागो येष्वस्ति तेषां जनिवेर धन्या।। गीताञ्जलिः, देशानुरागः परमोऽनुरागः,श्लोक-2
  8. यत्र गंगा नदी यत्र कालिन्दिका यत्र गोदा च कृष्णा च कावेरिका।
  9. यत्र सिन्धुर्विपाशा शुभा नर्मदा भारतं तं नुमो भारतं तं नुमः ।। गीताञ्जलिः, भारतं तं नुमो भारतं तं नुमः, श्लोक-3
  10. वही, श्लोक 9, 10, 11
  11. यत्र रामश्च कृष्णश्च विश्वात्मनौ यत्र बुद्धोवशिष्ठश्च वाल्मीकजः।
  12. गौतमो जैमिनिः श्रीकाणादो मुनिः भारतं तं नुमो भारतं तं नुमः।। वही,श्लोक-4
  13. वहीं, श्लोक,6
  14. गीताञ्जलिः, भारत-राष्ट्र-वन्दनम्, श्लोक-1, नमामि राष्ट्र भारतं
  15. अथर्ववेद 12.1.12
  16. गीताञ्जलिः, देशानुरागः परमोऽनुरागः, श्लोक-1
  17. वही, श्लोक -4
  18. राष्ट्रस्य हेतोर्बलिदानभावो राष्ट्रस्य कल्याण-विर्धा प्रयत्नः।
  19. रात्रिन्दिवं राष्ट्र समृद्धि चिन्ता स्याज्जीवनस्य प्रथमोऽभिलाषः।। गीताञ्जलिः, देशानुरागः परमोऽनुरागः, श्लोक-6
  20. स्वजीवनोत्सर्ग व्रता अजस्त्रं प्राणन् जहुर्ये निजराष्ट्रहेतोः।
  21. शान्तेश्च क्रान्तेश्च व्रतं चरन्तः त एव देवा अमराः सुराश्च।। वही, श्लोक-9
  22. गीताञ्जलिः, देशानुरागः परमोऽनुरागः, श्लोक-10
  23. वही, शलोक-3
  24. गीताञ्जलिः, हुतात्मनः, श्लोक- 6
  25. यदा यदा देश समृद्धि नाशः स्वातन्त्र्य नाशो जनशोषणं च।
  26. तदा तदा देश स्वतंत्रतार्थं हुतात्मनामत्र शुभोऽवतारः ।। गीताञ्जलिः, हुतात्मनः, श्लोक-7
  27. गीताञ्जलिः, लोकतन्त्रम्, श्लोक-1
  28. गीताञ्जलिः, स्वातंत्र्य-गौरवम्, श्लोक-8
  29. दीनोद्धृतौ जनहिते जनता समृद्धौ राज्यस्य विज्ञनिवहस्य च वृत्तिरस्तु।
  30. संशोषितस्य विकलस्य च रक्षणं स्यात् स्वार्थं विहाय परमार्थरतिश्चकास्तु ।। गीताञ्जलिः, सर्वोदयः, श्लोक-4
  31. वही, श्लोक -2
  32. जात्यादि भेदमपहाय विहाय भाषा प्रान्तादिभेदमवमत्य च वर्गभेदम्।
  33. राष्ट्रोन्नतौ कृतधियो विदुषां वरेण्याः संसाधयन्तु निजदेशहितं समृद्ध्यै ।। वही, श्लोक-9
  34. वही, श्लोक-3
  35. गीताञ्जलिः, सर्वोदय, श्लोक-5
  36. द्वेषबुद्धिः सदा तापसंचारिणी स्वार्थबुद्धिः सदा शान्ति संहारिणी।
  37. भेदबुद्धिः सदा स्नेह संहारिणी लोभबुद्धिः सदा दुःख संचारिणी।। गीताञ्जलिः, वसुधैव कुटुम्बकम्,श्लोक-3
  38. विश्वबन्धुत्व मन्त्रः सदा श्रेयसे विश्वबन्धुत्व शक्तिः सदा प्रेयसे। वही,श्लोक-10
  39. नात्रास्ति धर्मो न गुणो न शीलं नापेक्षितो वा शुचितानुरागः।
  40. संशोषणं भूषणमत्रं चौर्यं क्रौर्यं हि शौर्यं धन लोलुपत्वम् ।।गीताञ्जलिः, आतंकवादः तन्निरोधश्च, श्लोक-3
  41. क्षुधानिवृत्तिः परशोणितेन शोष्यं जगद् वर्तत एव लक्ष्यम्। वही, श्लोक-5
  42. वही, श्लोक-10
  43. देशद्रुहां नाशनमेव धर्मः दुरात्मनाशः परमेशभक्तिः। वही, श्लोक-11
  44. वही, श्लोक-12
  45. प्रदूषणं प्रदूषणं समस्त विश्व शोषणम्।
  46. जलं नभः स्थलं वनं समुद्र वारि दूषणम् ।। गीताञ्जलिः, प्रदूषण-समस्या, श्लोक-1
  47. तरोर्वनस्य छेदनं प्रधानमत्र कारणम्। वही, श्लोक-3
  48. रसायनेन संयुतं समं पदार्थजातकम्।
  49. इमे च कीटनाशकाः द्रवास्तु भूमि दूषकाः ।। गीताञ्जलिः, प्रदूषण-समस्या
  50. तरोर्वनस्य रोपणं वनस्पतेर्विवर्धनम्। विष प्रभाव रोधकं वनादि वर्धनं मतम् ।। वही, श्लोक-11

Publication Details

Published in : Volume 8 | Issue 2 | March-April 2025
Date of Publication : 2025-04-12
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 144-149
Manuscript Number : SHISRRJ258227
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. रश्मि यादव, "गीताञ्जलि: गीतिकाव्य में राष्ट्रिय चेतना का शंखनाद", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 8, Issue 2, pp.144-149, March-April.2025
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ258227

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