समकालीन हिन्दी कविता और स्त्री विमर्श

Authors(1) :-रूमा ज़ैदी

समकालीन कविता में अब नये प्रकार के और अनेक प्रकार के स्वर सुनाई देने लगे हैं। यह वर्तमान है दौर स्त्री विमर्श के लिहाज से पहले ही अधिक समावेशी और लोकतात्रिक हुआ है। लैंगिक विभेद और देह मुक्ति अवधारक इस विमर्श को एक नया आमाम देती है। अतिवादी विचारधाराओं में मर्दवाद को समाप्त करने की ललक इतने आगे निकल जाती है लगता है वह मर्द को ही खतम कर देगी अच्छा है मर्द न रहे और इंसान बचा रहे।

Authors and Affiliations

रूमा ज़ैदी
शोध छात्रा, हिन्दी विभाग, मोनाड विश्वविद्यालय, हापुड़ (यू0 पी0) इंडिया

समकालीन, कविता, स्त्री, साहित्य, कहानी, उपन्यास, आत्मकथा,हिन्दी।

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | January-February 2018
Date of Publication : 2018-02-28
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 40-46
Manuscript Number : SISRRJ18111
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

रूमा ज़ैदी, "समकालीन हिन्दी कविता और स्त्री विमर्श", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 1, pp.40-46, January-February.2018
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ18111

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