Manuscript Number : SISRRJ181302
कुमारसंभवम् महाकाव्य में पर्यावरण: एक विमर्श
Authors(1) :-डाॅ. विमल शुक्ला महाकवि कालिदास का स्वाभाविक और मनोरम चित्रण कुशलतापूर्वक करने में सि़द्धस्त है। कालिदास के प्रकृति चित्रण से ज्ञात होता है कि मानो कालिदास ने स्वयं प्रकृति का सूक्ष्म दृष्टि से अवलोकन कर वर्णन किया, जिससे सजीव चित्रण सम्भव हो सके। कालिदास ने प्रकृति का मानवीकरण भी किया है। मानव की सहचरी प्रकृति उनके दुःख में दुःखी होती है और सुख से सुखी होती है, यह कालिदास की विशिष्टता है। कुमारसम्भवम् में कालिदास की प्रकृति आध्यात्मिकता से ओत-प्रोत है।
डाॅ. विमल शुक्ला Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018 Article Preview
अतिथि अध्यापक, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद
विदन्ति मार्गं नखरन्ध्रमुक्तैर्मुक्ताफलैः केसरिणां किराताः।। कुमारसंभवम् 1/6
न्यस्ताक्षरा धातुरसेन यत्र भूर्जत्वचः कुंजरबिन्दुशोणाः।
व्रजन्ति विद्याधरसुन्दरीणाम् अनंग लेखक्रिययोपयोगम्।। कुमारसंभवम् 1/7
यः पूरयन् कीचकरन्ध्रभागान् दरीमुखोत्थेन समीरणेन।
उद्गाास्यतामिच्छति किन्नराणां तानप्रदायित्वमिवोपगन्तुम्।। कुमारसंभवम् 1/8
कपोलकण्डूः करिभिर्विनेतुं विघट्टितानां सरलद्रमाणाम्।
यत्र स्रुतक्षीरतया प्रसूतः सानूनि गन्धः सुरभीकरोति।। कुमारसंभवम् 1/9
वनेचराणां वनितासखानां..............मतैलपूराःसुरतप्रदीपाः।। कुमारसंभवम् 1/10
उद्धेजयत्यंगुलिपाष्र्णिभागान्......भिन्दन्ति मन्दां गतिमश्वमुख्यः।। कुमारसंभवम् 1/11
दिवाकराद्रक्षति यो गुहासु ...........ममत्वमुच्चैः शिरसां सतीव।। कुमारसंभवम् 1/12
लांगुलविक्षेपविसर्पिशोभैः.....कुर्वन्ति बालव्यसनैश्चमर्यः।। कुमारसंभवम् 1/13
यत्रांशुकाक्षेपविलज्जितानां .........स्तिरस्करिण्यो जलदा भवन्ति।। कुमारसंभवम् 1/14
भागीरथीनिर्झरशीकराणां......रासेव्यते भिन्नशिखण्डिबर्हः।। कुमारसंभवम् 1/15
Date of Publication : 2018-09-30
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Page(s) : 07-11
Manuscript Number : SISRRJ181302
Publisher : Shauryam Research Institute
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