किरातार्जुनियम् में पाण्डित्य परम्परा

Authors(1) :-धर्मेन्द्र कुमार

संस्कृत साहित्य के इतिहास में रचनाकौसल की दृष्टि से लघुत्रयी तथा बृहत्त्रयी का महत्त्वपूर्ण स्थान है। लघुत्रयी के अन्तर्गत महाकवि कालिदास के रघुवंशम्,कुमारसम्भवम् तथा मेघदूतम् की गणना की जाती है तथा बृहत्त्रयी के अन्तर्गत किरातार्जुनियम् शिशुपालबधम् तथा नैषधीयचरितम् महाकाव्य परिगणित है। किरातार्जुनियम् महाकवि भारवि की उपलब्ध कृति है, जिसमें महाकवि ने भावपक्ष की उपेक्षा कलापक्ष पर अधिक ध्यान दिया है। भारवि के काव्य में भाषा,रस,अलंकार,छन्द आदि समस्त विषयों का सुन्दर परिपाक उनकी बहुशास्त्रज्ञता केा द्योतित करता है। इनसे काव्य में भिन्न-भिन्न शास्त्र विषक ज्ञान अनेक स्थलों पर दृष्टिगोचर होता है। संक्षेप मे महाकवि के काव्य किराताजुनियम् की शास्त्रीय मीमांसा सोदाहरण प्रस्तुत है।

Authors and Affiliations

धर्मेन्द्र कुमार
शोधछात्र, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी।

  1. किरातार्जुनीयम् 3/30
  2. किरातार्जुनीयम् 7/22
  3. किरातार्जुनीयम् 7/3
  4. किरातार्जुनीयम् 13/19
  5. किरातार्जुनीयम् 2/27
  6. किरातार्जुनीयम् 17/34
  7. किरातार्जुनीयम् 8-10 सर्ग में
  8. किरातार्जुनीयम् 13/31
  9. किरातार्जुनीयम् 12/45,47,49
  10.  किरातार्जुनीयम् 17/7,9
  11. किरातार्जुनीयम् 1/2
  12. किरातार्जुनीयम्1/4
  13. किरातार्जुनीयम् 5/39
  14. किरातार्जुनीयम् 1/45
  15. किरातार्जुनीयम् 2/28
  16. किरातार्जुनीयम् 11/10
  17. किरातार्जुनीयम् 5/30
  18. किरातार्जुनीयम् 5/33
  19. किरातार्जुनीयम् 5/23

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018
Date of Publication : 2018-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 12-15
Manuscript Number : SISRRJ181303
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

धर्मेन्द्र कुमार, "किरातार्जुनियम् में पाण्डित्य परम्परा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 3, pp.12-15, September-October.2018
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181303

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