शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्मविमर्श

Authors(1) :-निधि सिंह

ब्रह्मसूत्र की व्याख्या करने से आचार्य लोग केवल सूत्रों के विषय में ही नहीं बल्कि सूत्रों को विभिन्न अधिकरणों में बाँटने के विषय में भी मतभेद रखते है और ब्रह्मसूत्र के प्रथम चार सूत्रों पर विशेष बल देते है। प्रथम सूत्र ‘अथातो ब्रह्मजिज्ञासा’1 में प्रयुक्त चार शब्दों का अर्थ शंकराचार्य ने अलग-अलग किया है। ‘अथ’ शब्द के विषय में उन्होंने कई विकल्प उठाये है और सबका निराकरण कर के आनन्तर्य अर्थ को स्वीकार किया है। यह उन्होंने स्पष्ट किया है कि ‘अथ’ का अर्थ प्रारम्भ का द्योतक मात्र नहीं है। क्योंकि ब्रह्मजिज्ञासा का प्रारम्भ नहीें किया जा सकता। जानने की इच्छा होने पर ज्ञान के लिए प्रयत्न का प्रारम्भ किया जा सकता है किन्तु स्वयं इच्छा होने पर ज्ञान के लिए प्रयत्न का प्रारम्भ किया जा सकता है किन्तु स्वयं इच्छा का प्रारम्भ प्रयत्नधीन नहीं है। इसलिए अथ का अर्थ प्रारम्भ नहीं है और न तो उसका अर्थ केवल मंगलमात है क्योंकि अथ शब्द का अन्य अर्थ में प्रयोग होने पर भी वह मंगल सूचक हो जाता है। पूर्व प्रकृतापेक्षा के अर्थ में भी अथ शब्द को लेने पर आनन्तर्य से फल मंे कोई भेद नहीं पड़ता। अतः ‘अथ’ शब्द का अर्थ आनन्तर्य ही मानना चाहिए। यहाँ पर प्रश्न यह उठता है कि किस चीज के बाद तुरन्त ब्रह्मजिज्ञासा प्रारम्भ होती है। वैष्णवाचार्य एवं मीमांसकों का कहना यह है कि ‘धर्म जिज्ञासा’ के बाद ब्रह्मजिज्ञासा प्रारम्भ होती है। अतः आनन्तर्य को हम इस अर्थ मंे लें कि ब्रह्म-जिज्ञासा के पहले धर्म-जिज्ञासा की अपेक्षा होती है। किन्तु शंकराचार्य इस प्रकार के आनन्तर्य को नहीं स्वीकार करते। उनका कहना यह है कि धर्म-जिज्ञासा के पहले भी ब्रह्म जिज्ञासा हो सकती है। जहाँ पर कर्मकांड मंे क्रम विवक्षित है वहाँ पर स्पष्ट रूप से कहा गया है कि अमुक कर्म के बाद अमुक कर्म होना चाहिए। किन्तु धर्म-जिज्ञासा के बाद ही ब्रह्म जिज्ञासा हो इस क्रम के लिये कोई श्रुति प्रमाण नहीं है। मीमांसकों का यह सिद्धान्त है कि स्वाध्याय का मुख्य तात्पर्य कर्मविषयक ज्ञान प्राप्त करना है क्योंकि श्रुति में यह स्पष्ट आया है कि यज्ञ, दान, तपस्या से ब्राह्मण उस आत्मा को जानने की चेष्टा करते है।

Authors and Affiliations

निधि सिंह
शोधच्छात्रा, संस्कृत विभाग, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी

  1. शंकर - ब्रह्मसूत्रभाष्य (निर्णयसागर, मुम्बई)
  2. रामानुज - ब्रह्मसूत्रभाष्य (आर0 वेंकेटेश्वर कं0)
  3. कोकिलेश्वर शास्त्री - अद्वैत दर्शन (कलकत्ता)
  4. बलदेव उपाध्याय - भारतीय दर्शन
  5. एस0के0 दास - वेदान्त एक अध्ययन (कलकत्ता)
  6. ब्रह्मसूत्र पर शांकरभाष्य 

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018
Date of Publication : 2018-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 16-19
Manuscript Number : SISRRJ181304
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

निधि सिंह, "शंकराचार्य के अनुसार ब्रह्मविमर्श", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 3, pp.16-19, September-October.2018
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181304

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