सांख्यदर्शन में प्रमाणविमर्श

Authors(1) :-ज्ञानधर भारतीय

‘अविद्या नेत्री मूलं सर्वक्लेशानाम्’1 अविद्या समस्त क्लेशों का मूल कारण है इस व्यास भाष्य के अनुसार समस्त अज्ञान एवं मिथ्या ज्ञानों का कारण अविद्या है। अविद्या और उसके संस्कारों को नष्ट करके सत्यज्ञान को प्राप्त कराना ही समस्त दर्शनकारोें का उद्देश्य है। प्रकृति से लेकर परमात्मा तक का सत्यज्ञान कैसे सम्भव है ? इसके लिए दर्शनों में विशेष पद्धति का निर्देश किया है। उस पद्धति में उद्देश्य लक्षण तथा उसकी परीक्षा का समावेश किया गया है। इस पद्धति के बिना सत्यासत्य का निर्णय करना कदापि सम्भव नहीं है, क्योंकि यह नियम है- ‘लक्षणप्रमाणाभ्यं वस्तुसिद्धिः’ लक्षण एवं प्रमाणों के द्धारा ही वस्तु की सिद्धि होती है। लक्षण जैसा कि ‘गन्धवती पृथिवी2 जो पृथिवी है वह गन्धवाली है। ऐसा लक्षण और प्रत्यक्षादि प्रमाण इनसे सब सत्यासत्य और पदार्थों का निर्णय हो जाता है इसके बिना कुछ भी नहीं है। न्याय की कसौटी बताते हुए न्याय तथा वात्स्यायन भाष्य में स्पष्ट लिखा है ‘प्रमाणैस्र्थपरीक्षणं न्यायः’3प्रमाणों से किसी पदार्थ की परीक्षा करना ही न्याय है। जैसे दीपकादि प्रकाश करने के साधनों से वस्तुओं के भाव और अभाव का ज्ञान होता है, उसी प्रकार प्रमाण से सत् असत् वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। अमर कोश में ‘प्रमीयते इति प्रमाण्’ से निष्पन्न प्रमाण शब्द के पाँच अर्थ-हेत, सीमा, शास्त्र परिमाण, प्रमाता ‘प्रमाणं हेतु-मर्यादा-शास्त्रेयत्ता प्रमातृषु’4बताया गया है। योगकारिक मेें प्रमाण को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है- ‘अबाधितो ह्यर्थबोधः प्रमा तत्करणं मतम्। सद्भूतार्थ प्रमाणं हि मिथ्याज्ञानस्य बाधकम्’।5 तत्त्व वैशारदी एवं योगवत्र्तिक में शास्त्र अभिमत प्रमाण के लक्षण दिये गये है। जो इस प्रकार है- ‘अनधिगततत्त्वबोधः पौरुषेयों व्यवहार हेतु प्रमा, तत्करणं प्रमाणम्’6 अनधिगततत्त्वबोधः प्रमा, तत्करणं प्रमाणमिति प्रमाणसामान्यलक्षणं सुगमत्वादकृत्वैव विभागः कृतः।7उक्त परिभाषा का आशय है कि अज्ञात तत्त्व का पौरुषेय बोध ही ‘प्रमा’ है और उस प्रमा का करण ‘प्रमाण’ नामक वृत्ति कही जाती है।

Authors and Affiliations

ज्ञानधर भारतीय
शोधच्छात्र, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग, दी0द0उ0गो0वि0वि0,गोरखपुर (उ0प्र0)

  1. योगदर्शन व्यास भाष्य-4/11
  2. न्यायदर्शन वात्स्यायन भाष्य-3/1/28
  3. न्यायदर्शन वात्स्यायन भाष्प-1/1/1
  4. अमरकोश-3/2/54
  5. योग कारिका-21
  6. तत्ववैशारदी-1/7
  7. योगवात्र्तिक-1/7
  8. तर्क भाषा-पृष्ठ 11
  9. संाख्य कारिका-4
  10. योगदर्शन-1/7
  11. योग कारिका-22
  12. संस्कृत-हिन्दी कोश-वामन शिवराम आप्टे पृष्ठ-658
  13. योग कारिका-23
  14. योगदर्शन व्यास भाष्य-1/7
  15. संख्य कारिका-5
  16. सांख्य कारिका माठर वृत्ति-5
  17. तर्क भाषा- पृष्ठ 60
  18. तर्क संग्रह-पृष्ठ 100
  19. न्याय दर्शन-1/1/4
  20. संस्कृत-हिन्दी कोश वामन शिवराम आप्टे पृष्ठ 40
  21. योगदर्शन व्यास भाष्य-1/7
  22. योग कारिका-24
  23. योगदर्शन भावगणेशवृत्ति-1/7
  24. योगदर्शन नागोजी भट्ट वृत्ति
  25. योगदर्शन सुधाकर
  26. सांख्य कारिका-5
  27. सांख्य कारिका-5
  28. सांख्य कारिका माठर वृत्ति-5
  29. सांख्य कारिका माठर वृत्ति-5
  30. न्याय दर्शन-1/1/5
  31. तर्क भाषा- पृष्ठ-110
  32. योगदर्शन व्यास भाष्य-1/7
  33. योगदर्शन व्यास भाष्य-1/7
  34. योगदर्शन भोजवृत्ति-1/7
  35. योगदर्शन चद्रिका-1/7
  36. योगदर्शन सुधाकर-1/7
  37. सांख्य कारिका-5
  38. योगदर्शन भावगणेश वृत्ति-1/7
  39. सांख्य कारिका माठर वृत्ति-5
  40. न्यायदर्शन-1/1/7
  41. तर्क भाष-पृष्ठ 185
  42. सांख्य दर्शन-1/21
  43. सांख्यकारिका-4

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018
Date of Publication : 2018-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 20-24
Manuscript Number : SISRRJ181305
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

ज्ञानधर भारतीय, "सांख्यदर्शन में प्रमाणविमर्श", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 3, pp.20-24, September-October.2018
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181305

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