Manuscript Number : SISRRJ181305
सांख्यदर्शन में प्रमाणविमर्श
Authors(1) :-ज्ञानधर भारतीय ‘अविद्या नेत्री मूलं सर्वक्लेशानाम्’1 अविद्या समस्त क्लेशों का मूल कारण है इस व्यास भाष्य के अनुसार समस्त अज्ञान एवं मिथ्या ज्ञानों का कारण अविद्या है। अविद्या और उसके संस्कारों को नष्ट करके सत्यज्ञान को प्राप्त कराना ही समस्त दर्शनकारोें का उद्देश्य है। प्रकृति से लेकर परमात्मा तक का सत्यज्ञान कैसे सम्भव है ? इसके लिए दर्शनों में विशेष पद्धति का निर्देश किया है। उस पद्धति में उद्देश्य लक्षण तथा उसकी परीक्षा का समावेश किया गया है। इस पद्धति के बिना सत्यासत्य का निर्णय करना कदापि सम्भव नहीं है, क्योंकि यह नियम है- ‘लक्षणप्रमाणाभ्यं वस्तुसिद्धिः’ लक्षण एवं प्रमाणों के द्धारा ही वस्तु की सिद्धि होती है। लक्षण जैसा कि ‘गन्धवती पृथिवी2 जो पृथिवी है वह गन्धवाली है। ऐसा लक्षण और प्रत्यक्षादि प्रमाण इनसे सब सत्यासत्य और पदार्थों का निर्णय हो जाता है इसके बिना कुछ भी नहीं है। न्याय की कसौटी बताते हुए न्याय तथा वात्स्यायन भाष्य में स्पष्ट लिखा है ‘प्रमाणैस्र्थपरीक्षणं न्यायः’3प्रमाणों से किसी पदार्थ की परीक्षा करना ही न्याय है। जैसे दीपकादि प्रकाश करने के साधनों से वस्तुओं के भाव और अभाव का ज्ञान होता है, उसी प्रकार प्रमाण से सत् असत् वस्तुओं का ज्ञान हो जाता है। अमर कोश में ‘प्रमीयते इति प्रमाण्’ से निष्पन्न प्रमाण शब्द के पाँच अर्थ-हेत, सीमा, शास्त्र परिमाण, प्रमाता ‘प्रमाणं हेतु-मर्यादा-शास्त्रेयत्ता प्रमातृषु’4बताया गया है। योगकारिक मेें प्रमाण को स्पष्ट करते हुए लिखा गया है- ‘अबाधितो ह्यर्थबोधः प्रमा तत्करणं मतम्। सद्भूतार्थ प्रमाणं हि मिथ्याज्ञानस्य बाधकम्’।5 तत्त्व वैशारदी एवं योगवत्र्तिक में शास्त्र अभिमत प्रमाण के लक्षण दिये गये है। जो इस प्रकार है- ‘अनधिगततत्त्वबोधः पौरुषेयों व्यवहार हेतु प्रमा, तत्करणं प्रमाणम्’6 अनधिगततत्त्वबोधः प्रमा, तत्करणं प्रमाणमिति प्रमाणसामान्यलक्षणं सुगमत्वादकृत्वैव विभागः कृतः।7उक्त परिभाषा का आशय है कि अज्ञात तत्त्व का पौरुषेय बोध ही ‘प्रमा’ है और उस प्रमा का करण ‘प्रमाण’ नामक वृत्ति कही जाती है।
ज्ञानधर भारतीय Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत एवं प्राकृत भाषा विभाग, दी0द0उ0गो0वि0वि0,गोरखपुर (उ0प्र0)
Date of Publication : 2018-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 20-24
Manuscript Number : SISRRJ181305
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181305