कालिदास के काव्यों में वर्णित विद्याविमर्श

Authors(1) :-डाॅ अजय प्रसाद राय

संस्कृत वाङ्मय में इतना विपुल साहित्य है कि इस दृष्टि से यह सभी प्राचीन तथा अर्वाचीन भाषाओं से आगे है, विचारो की शालीनता, भावनाओं की पावनता तथा अभिव्यक्ति की व्यापकता में तो इसकी तुलना किसी से की ही नहीं जा सकती। संस्कृत साहित्य की परम्परा में आचार्यों के द्वारा कवि और काव्य की जितनी भी परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं यदि उन सबका एक ही उदाहरण लेना हो तो मेरी दृष्टि में महाकवियांे और उनके काव्य ही इस कसौटी पर खरा उतरता हैं नाट्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, छन्दशास्त्र तथा कविशिक्षा के जो भी ग्रन्थ मिलते हैं उनमें वर्णित लक्षणादिकों के द्वारा यदि हम कवियों की समीक्षा करते हैं तो ‘‘अनामिका सार्थवती बभूव’’ सूक्ति चरितार्थ होती है। यह कोई अत्युक्ति नहीं अपितु स्वसंवेद्य अनुभवसिद्ध है। जैसा कि मैंने समझा है कि संस्कृत साहित्य में महाकवियों को लेकर जितनी चर्चा हुई है, जितना लिखा पढ़ा गया है, जितना प्राप्त होता है उतना किसी भी अन्य कवि के सम्बन्ध में नहीं। विद्वानों द्वारा महाकवियों के सम्बन्ध में लिखे गए अनेक ग्रन्थ मेरे द्वारा देखे गए और तदनन्तर अपनी बुद्धि के अनुसार महाकवियों के साहित्य को अनेक बार मैंने पढ़ा और हर बार कुछ नया-नया मिलता रहा। मुझे जो अनुभव हुआ उसके अनुसार मेरी एक बलवती धारणा बनी कि ऐसी कोई विद्या शायद ही बची हो जिसका निर्देश संस्कृत साहित्य में न मिलता हो। हम यहाँ स्पष्ट कर देना उचित समझते हैं कि आचार्यों द्वारा जितनी विद्याओं का उल्लेख हुआ है उससे कहीं अधिक बढ़कर महाकवियों के सम्बन्ध में सोचना पड़ता है। सम्भवतः कहीं ऐसा ही कारण रहा होगा जिससे आचार्य राजशेखर को काव्यमीमांसा जैसे ग्रन्थ का निर्माण करना पड़ा। हम यहाँ यह कहना उचित समझते हैं कि काव्य अथवा नाट्य के सम्यक् निरूपण में सृष्टि की कोई विद्या अथवा ज्ञान का कोई क्षेत्र नहीं बचता है। सम्पूर्ण सृष्टि महाकवियों तथा आचार्यों द्वारा वर्णित की जाती है। जैसा कि भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में कहा भी है

Authors and Affiliations

डाॅ अजय प्रसाद राय
सहायक शिक्षक, रा0 कृ सीता2, उच्च विद्यालय हरिहरगंज, पलामू (झारखण्ड)

  1. काव्यप्रकाश 1/1
  2. शब्दकल्पदुंम पृ0 389
  3. विद्यां चाविद्यां च यस्तद्वेदोभयं सह। अविद्यया मृत्युं तीत्र्वा विद्ययाऽमृतमश्नुते।। ईशोपनिषद्/11
  4. अथैताः दश वै देव्यो मूर्Ÿाये मम पश्य ताः। महाविद्या इमा प्रोक्ता नामान्यासां तु वर्णये।। काली तारा महाविद्या षोडशी भुवनेश्वरी। भैरवी छिन्नमस्ता च सुन्दरी वगलामुखी।। धूमावती च मातप्री महाविद्या दशैव ताः। बृहद्धर्मपुराण, 36/125-125
  5. ऋग्वेदस्तु स्मृतौ ब्रह्मा यजुवेदस्तु वासवः। सामवेदं तथा विष्णु शम्भुचाथर्वणो भवेत्। शिक्षाप्रजापतिज्र्ञेया कल्पो ब्रह्मा प्रकीर्तितः। सरस्वती व्याकरणं निरुक्तं वरुणः प्रभुः। छन्दो विष्णुस्तथैवाग्निज्र्योतिषं भगवान् रविः। मीमांसा भगवान् सोमो न्यायमार्गः समीरणः। धर्मथ धर्मशास्त्राणि पुराणईा तथा मनुः। इतिहासं प्रजाध्यक्षो धनुर्वेदः शतक्रतुः। आयुर्वेदस्तथा साक्षत्देवो धन्वन्तरिः प्रभुः। कलावेदो महीदेवी नृत्यशास्त्रं महेश्वरः। स{र्षणः पईारात्रं रूद्रः पाशुपतं तथा। पात}ालसमनन्नईा सांख्यईा कपिलो मुनिः।
  6. वाक्यपदीयम्/ब्रह्म/1
  7. काव्यादर्श / प्र. प. / 4
  8. वाचस्पत्यम्, भाग 6 पृ0 49
  9. विष्णुपुराण
  10. काव्यमीमांसा द्वितीय अध्याय
  11. गरुड़पुराण 110/115
  12. रघुवंशाम् 10/51
  13. रघुवंशाम् 1/44
  14. रघुवंशाम् 10/4
  15. कुमारसम्भवम् /5/33 
  16. अमी वेदिं परितः क्लृप्तधिष्ण्याः ...... शाकु0/4/10
  17. विक्रमोर्वशीयम् /2/36
  18. रघुवंश/2/36
  19. रघुवंश/11/56
  20. रघु0/12/58
  21. यः कश्चन रघूणां हि परमेकः परन्तपः। अपवाद इवोत्सर्ग व्यार्ततयितुमीश्वरः।। रघुवंश/11/7
  22. रघुवंश/11/9
  23. संस्कृत साहित्य का इतिहास पृ 213
  24. उŸाररामचरितम् पृ 56
  25. उŸाररामचरितम् पृ0 36
  26. अभिज्ञानशाकुन्तल 4/10

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018
Date of Publication : 2018-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 25-30
Manuscript Number : SISRRJ181306
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ अजय प्रसाद राय, "कालिदास के काव्यों में वर्णित विद्याविमर्श ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 3, pp.25-30, September-October.2018
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181306

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