Manuscript Number : SISRRJ181306
कालिदास के काव्यों में वर्णित विद्याविमर्श
Authors(1) :-डाॅ अजय प्रसाद राय संस्कृत वाङ्मय में इतना विपुल साहित्य है कि इस दृष्टि से यह सभी प्राचीन तथा अर्वाचीन भाषाओं से आगे है, विचारो की शालीनता, भावनाओं की पावनता तथा अभिव्यक्ति की व्यापकता में तो इसकी तुलना किसी से की ही नहीं जा सकती। संस्कृत साहित्य की परम्परा में आचार्यों के द्वारा कवि और काव्य की जितनी भी परिभाषाएँ प्राप्त होती हैं यदि उन सबका एक ही उदाहरण लेना हो तो मेरी दृष्टि में महाकवियांे और उनके काव्य ही इस कसौटी पर खरा उतरता हैं नाट्यशास्त्र, अलंकारशास्त्र, छन्दशास्त्र तथा कविशिक्षा के जो भी ग्रन्थ मिलते हैं उनमें वर्णित लक्षणादिकों के द्वारा यदि हम कवियों की समीक्षा करते हैं तो ‘‘अनामिका सार्थवती बभूव’’ सूक्ति चरितार्थ होती है। यह कोई अत्युक्ति नहीं अपितु स्वसंवेद्य अनुभवसिद्ध है। जैसा कि मैंने समझा है कि संस्कृत साहित्य में महाकवियों को लेकर जितनी चर्चा हुई है, जितना लिखा पढ़ा गया है, जितना प्राप्त होता है उतना किसी भी अन्य कवि के सम्बन्ध में नहीं। विद्वानों द्वारा महाकवियों के सम्बन्ध में लिखे गए अनेक ग्रन्थ मेरे द्वारा देखे गए और तदनन्तर अपनी बुद्धि के अनुसार महाकवियों के साहित्य को अनेक बार मैंने पढ़ा और हर बार कुछ नया-नया मिलता रहा। मुझे जो अनुभव हुआ उसके अनुसार मेरी एक बलवती धारणा बनी कि ऐसी कोई विद्या शायद ही बची हो जिसका निर्देश संस्कृत साहित्य में न मिलता हो। हम यहाँ स्पष्ट कर देना उचित समझते हैं कि आचार्यों द्वारा जितनी विद्याओं का उल्लेख हुआ है उससे कहीं अधिक बढ़कर महाकवियों के सम्बन्ध में सोचना पड़ता है। सम्भवतः कहीं ऐसा ही कारण रहा होगा जिससे आचार्य राजशेखर को काव्यमीमांसा जैसे ग्रन्थ का निर्माण करना पड़ा। हम यहाँ यह कहना उचित समझते हैं कि काव्य अथवा नाट्य के सम्यक् निरूपण में सृष्टि की कोई विद्या अथवा ज्ञान का कोई क्षेत्र नहीं बचता है। सम्पूर्ण सृष्टि महाकवियों तथा आचार्यों द्वारा वर्णित की जाती है। जैसा कि भरतमुनि ने नाट्यशास्त्र में कहा भी है
डाॅ अजय प्रसाद राय Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018 Article Preview
सहायक शिक्षक, रा0 कृ सीता2, उच्च विद्यालय हरिहरगंज, पलामू (झारखण्ड)
Date of Publication : 2018-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 25-30
Manuscript Number : SISRRJ181306
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ181306