Manuscript Number : SISRRJ1818910
मुग़ल चारबाग़ शैली
Authors(1) :-अंकुर वर्मा मानव की विकास यात्रा पर गौर किया जाए तो इसमें बगीचों का योगदान विशेष रूप से उभर कर सामने आता है। यदि बाइबिल की मानी जाए तो आदम और ईवा भी बगीचे में ही थे जब उन्होंने एक भूल से इस सृष्टि का सृजन कर डाला। लगभग सभी धार्मिक साहित्यों में किसी न किसी रूप में बागों की कल्पना को स्थान दिया गया है। धार्मिक साहित्य से इतर राजनैतिक अतीत पर नज़र डालें तो भी बगीचों की महत्ता नज़र आती है। शासकों द्वारा उद्यानों का निर्माण सदैव कराया जाता रहा है- कभी यात्रियों के ठहरने के उद्देश्य से तो कभी निजी आमोद प्रमोद हेतु, तो कभी किसी प्रिय की स्मृति में। भारत के संदर्भ में पिछले ढाई हज़ार वर्षों के इतिहास की चर्चा करें तो बौद्धकाल में राजकुमार जैत की कथा से लेकर ब्रिटिश काल तक उद्यानों की सांस्कृतिक महत्ता सदैव बनी रही है। इसमें भी मध्यकाल पर विशेष दृष्टि डालें तो भारत के महानतम सम्राज्यों में गिने जाने वाले मुग़ल साम्राज्य की भूमिका सर्वप्रमुख रूप से दिखाई देती है। मुग़लों ने तीन शताब्दियों से अधिक समय तक भारतीय उपमहाद्वीप के एक विशाल भाग पर शासन किया और राजनीति के साथ-साथ कला-संस्कृति के क्षेत्र में भी अद्वितीय उत्कृष्टता को प्राप्त किया। मुग़ल बादशाहों, विशेष रूप से अकबर, जहाँगीर और शाहजहाँ के समय स्थापत्य के क्षेत्र में सराहनीय कार्य किये गये। इनमें ही एक पक्ष "मुग़ल उद्यानों" का था जो कि बेहद वैज्ञानिक तरीके से ज्यामितीय गणनाओं व सौंदर्य पक्ष को ध्यान में रखते हुए निर्मित किये गए थे। मुग़लों ने दिल्ली, आगरा, कश्मीर, लाहौर समेत पूरे साम्राज्य में अनेक आलीशान बगीचों की स्थापना करवाई जिनमें से कई आजतक अपनी बेजोड़ तकनीक की गवाही देने के लिए हमारे सामने मौजूद हैं। मुग़लों द्वारा इन उद्यानों के निर्माण में जिन सिद्धांतों एवं तकनीकों का प्रयोग किया उन्हें ही संक्षेप में "चारबाग शैली" के नाम से जाना जाता है।
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शोध छात्र, मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2018-02-28
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 128-138
Manuscript Number : SISRRJ1818910
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ1818910