Manuscript Number : SISRRJ1818920
भारत में केन्द्रीय सेवाओं में आरक्षण: एक मूल्यांकन
Authors(1) :-डाॅ0 सीमा पंवार भारतीय संविधान के अनुसार आरक्षण से अभिप्राय समाज के दलित, कमजोर एवं अन्य पिछड़ों के लिये सामान्य चयन की न्यूनतम अर्हता में शिथिलता बरत कर सरकारी सेवाओं में भर्ती अथवा शैक्षिक संस्थानों में प्रवेश का उपलब्ध करना माना गया। आरक्षण का मूल उद्देश्य वंचितों को शेष समाज के बराबर तक लाना था। इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि भारत के संविधान निर्माताओं ने भारत में आरक्षण को सामाजिक पुनर्निर्माण के औज़ार के रूप में प्रयुक्त किया, जिसके प्रमाण भारतीय संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों में प्रत्यक्ष रूप से परिलक्षित होते हैं। इन प्राविधानों से अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति एवं अन्य पिछड़ा वर्ग लाभान्वित होता है।
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 16 (4) में यह प्राविधान है कि ’इस (16) अनुच्छेद की कोई भी बात राज्य को पिछड़े हुए नागरिकों के किसी वर्ग के पक्ष में जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य के अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, नियुक्तियों या पदो के लिए आरक्षण के लिए उपबन्ध करने से निवारित नहीं करेगी।’ अनुच्छेद 16 (4) (क) के अनुसार ’इस अनुच्छेद की कोई बात राज्य को अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के पक्ष में जिनका प्रतिनिधित्व राज्य की राय में राज्य की अधीन सेवाओं में पर्याप्त नहीं है, राज्यों के अधीन सेवाओं में (किसी वर्ग के अनुवर्ती वरिष्ठता के साथ प्रोन्नति के मामलों में आरक्षण करने से निवारित नहीं करेगी।
उपरोक्त प्राविधानों को आधार मानकर केन्द्रीय सेवाओं में अनुसूचित जाति को 15ः, अनुसूचित जनजाति को 7.5ः तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को 27ः (1993 से) प्रदान किया गया जिसका विशलेषण इस प्रकार किया जा सकता है।
डाॅ0 सीमा पंवार Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 1 | January-February 2018 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, राजनीति विज्ञान विभाग, मेरठ कॉलिज, मेरठ, भारत।
Date of Publication : 2018-02-28
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 179-182
Manuscript Number : SISRRJ1818920
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ1818920