Manuscript Number : SISRRJ1818925
21 वीं सदी की कविता का सामाजिक-राजनैतिक स्वर
Authors(1) :-डॉ. रमेश कुमार गोहे कविता ने आधुनिक युग में अपने स्वरूप और स्वर में आमूलचूल परिवर्तन किया । लघु मानव से विश्व गाँव और ब्रह्मांडीय, अन्तरिक्ष जीवन की समस्याओं तक को अपनी कविताओं का विषय बनाया । मानव जीवन की तमाम समस्याओं से लेकर मनोविश्लेषण या मनोविज्ञान चिंतन को भी अपनी कविताओं के विषय बनाये । अंतर्दन्द्व से लेकर मानसिक पीड़ा और त्रासदी तक को अपनी कविता के विषय बनाये ।कवियों ने निर्भीक होकर बड़ी से बड़ी और छोटी से छोटी समस्याओं पर लेखनी चलाई । जिम्मेदार समाज और जिम्मेदार व्यवस्थाओं पर प्रश्न उठाये । उसके नैतिक पक्ष पर जोर दिया । सामाजिक और सांस्कृतिक उत्थान दिशा में हमेशा ही कवियों के द्वारा परिवर्तन के गीत गए गए। तमाम क्रांतियाँ इन्हीं गीतों को गाकर हुईं । भारत में आजादी की लड़ाई भी कवियों के द्वारा लिखी गईं कविताओं को गाकर ही आजादी मिली ।
प्रस्तुत शोध आलेख में हम 21वीं सदी की कविताओं में भाषा और परिवेश, संवाद व पात्र परिचय, वैयक्तिक चरित्र, कथानक, कविता की विषयवस्तु, समाज व संस्कृति का परिचय, रेखांकन कविताओं में स्त्री और उसकी भूमिका तथा अन्य सभी पक्षों जैसे दलित विमर्श की कविताएं, स्त्री विमर्श और परिवार विमर्श की कविताएं, कविता की भाषा-शैली, कविताओं पर भूमंडलीकरण का प्रभाव, राजनीतिक तथा बाहरी हस्तक्षेप का प्रभाव, पर्यावरण और उसकी चिंताओं के बिंदु, सामाजिक परिवेश का आंकलन आदि बिंदुओं को खोजने और वर्तमान समय और समाज की परिस्थितियों से उनका तादात्म्य स्थापित करने की कोशिश करेंगे ।
डॉ. रमेश कुमार गोहे हिन्दी कविता, सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश, भूमंडलीकरण, विमर्श, आधुनिक साहित्य । Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 4 | July-August 2022 Article Preview
सहायक प्राध्यापक, गुरु घासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर (छ.ग.), भारत।
Date of Publication : 2022-07-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 79-91
Manuscript Number : SISRRJ1818925
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SISRRJ1818925