नैषधीयचरितम् में अद्वैत वेदान्त की अवधारणा

Authors(1) :-डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव

नैषध में विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों का उल्लेख है। श्री हर्ष समस्त दर्शनों के अद्वितीय विद्वान थे। श्री हर्ष ने वेदान्त तथा वैष्णव के पूर्वोक्त मतों का समन्वय किया है। विष्णु पूजा करते हुए नल स्तुति करते हैं; ‘‘युक्तिसंगत शास्त्रों तथा उपनिषदों के सर्वरवल्विद ब्रह्म इत्यादि प्रमाणों से जगत् की समस्त वस्तुओं में एक ही सत्ता भासमान् होती है, अतः उनमें कोई भेद नहीं माना जा सकता, किन्तु आपकी इच्छा के कारण, जो अनिर्वाच्य अनाद्य अविद्या रूप है, प्रत्येक वस्तु पृथक् ही प्रतीत होती है। श्री हर्ष की रचना भी इसी प्रवाह के साथ चली है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, दी0द0उ0 गोरखपुर विश्वविद्यालय, गोरखपुर,उŸार प्रदेश, भारत

नैषधीयचरितम्, अद्वैत वेदान्त, संस्कृत, दार्शनिक,साहित्य, महाकाव्य।

1. घर्षितपरास्तर्केषु यस्योक्तयः।।
नैषधीय चरितम् 22/153
2. वही, 22/153
3. प्राणेनरक्षन्नवरं कुलायं बहिष्कुलायदमृतश्चरित्वा।
स ईयते मृतो यत्र काम हिरण्मयः पुरुष एक हंस।।
वृहदारण्यकोपनिषद 4/3/12
4. उपर तेषु हीन्द्रियेषु स्वप्नान पश्यतिइत्यादि।
शंकर भाष्य 5/4/15
5. नैषध चरितम् 1/40
6. नेत्राणि वैदर्भसुतासखीनां विमुक्ततक्र्तादूषयग्रहाणि।
प्रापुुस्तमेक निरूपात्यरूपं बहमेवचेतांसि यतव्रतानाम्।।
नैषधीय चरितम् 3/3
7. छान्दोग्य उपनिषद् अध्याय-7
8. नैषधीय चरितम् 11/129
9. मुनिर्यथात्मान मथ प्रबोधवान् प्रकाशयन्त स्वयबुध्यता
अपि प्रपन्नां प्रकृति विलोक्य तामवाप्तसंस्कारतयाऽसृजदिन्रः।।
नैषधीय चरितम् 5/121

10. हंस तनौ सन्निहितं चरतं मुनेमनोवृत्तिरिव स्विकायाम्।
ग्रहीतु कामादरिणा शयेन यत्नादर्सो निश्चलता जगाहे।
नैषधीय चरितम् 3/4
11. मनः प्रधानत्वात् लिंग्य मनः लिंगमित्युच्यते।
शंकर भाष्य वृहदारण्यकोपनिषद् 4/4/6
12. अमूनि गच्छन्ति युगानिनक्षणः कियत्सहिष्ये न हि मृत्युस्ति में।
स मां न कान्तः स्फुटमन्तरूज्झिता न तंमनस्तच्च न कायवायवः।।
नैषध चरितम् 9/94
13. नैषधयीय चरितम् 3/3
14. नैषध 3/4
15. स व्यतीत्य वियदन्तरगाधं नाकनायक निकेतनमाप।
सम्प्रतीर्य भवसिन्धुमनादि ब्रह्म शर्मभरचारूयतीव।।
नैषध 5/8
16. मुनिर्यथात्मानमथप्रबोधवान् प्रकाशयन्तं स्वमसावबुध्यत।
अपि प्रपन्नां प्रकृति विलोक्य तामवाप्तसंस्कारतयासृजदिगरः।।
नैषध 9/12
17. साप्तुंप्रयच्छतिन पक्षचतुष्टये तां तल्लामशंसिनि नपंचकोटिमात्रेः।।
श्रंद्धांदधे निषधराऽ् विभतौ मतानाम द्वैततत्त्वइवसत्यतरेऽपि लोकः।।
नैषध 13/36
18. नैषध 21/107

 

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 2 | March-April 2020
Date of Publication : 2020-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 33-38
Manuscript Number : SHISRRJ120328
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 (श्रीमती) मधु सत्यदेव, "नैषधीयचरितम् में अद्वैत वेदान्त की अवधारणा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 2, pp.33-38, March-April.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ120328

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