Manuscript Number : SHISRRJ181219
पुराणों में कृषि व्यवस्था
Authors(1) :-डॉ. अभिषेक दत्त त्रिपाठी
मानव ही नही, वरन् समस्त प्राणियों के लिए भोजन अति आवश्यक है बल्कि अनिवार्य है। बिना भोजन के मनुष्य के शरीर का विकास असंभव है। मानव अपनी आवश्यकता अनुसार खाद्य पूर्ति के लिए प्रयत्न करता है। वह पृथ्वी पर अन्न, फल आदि की उत्पत्ति करता है जो कृषि कर्म कहलाता है। विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण, वामन पुराण, गरुड़ पुराण, नारद पुराण, इत्यादि पुराणों में कृषि के कर्म को करने के विविध तरीके और उन पर विस्तार से चर्चा की गई है। कृषि विद्या की कुशलता से उत्तम, अत्यधिक एवं ऐच्छिक अन्न की उत्पत्ति की जा सकती है। यजुर्वेद में भी कृषि करने का महान स्थान भूमि ही बताई गई है। - भूमिरावपनं महत्
प्रत्येक मनुष्य को भोजन मिले, खाद्य पदार्थों की समस्या न हो इसके लिए कृषि करने की आवश्यकता है। यजुर्वेद या कहता है की भूमि को कृषि योग्य बनाना चाहिए। इस प्रकार पुराणों और वेदों के अनुसार हम सब को पृथ्वी पर उत्तम अन्नों की कृषि करना और कराना चाहिए।
डॉ. अभिषेक दत्त त्रिपाठी
पुराण, कृषि, मनुष्य, खाद्य, भारत, उद्योग, अर्थव्यवस्था, यजुर्वेद| Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 2 | July-August 2018 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, का0 सु0 साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय अयोध्या, उत्तर प्रदेश
Date of Publication : 2018-08-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 151-155
Manuscript Number : SHISRRJ181219
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ181219