काश्मीर शैवदर्शन में जीव का स्वरूप

Authors(1) :-डाॅ0 सी0 के0 झा

जीव सृष्टि का केन्द्र बिन्दु है और दर्शन की रचना जीव के लिए ही हुई है। इसलिए भारतीय-दर्शन के विविध ग्रन्थों में जीव का वर्णन किसी न किसी रूप में अवश्य किया गया है। समस्त भारतीय आस्तिक एवं नास्तिक दर्शनों में जितने भी सिद्धांतों की उद्भावना की गई है, वे सभी जीव के यथार्थ स्वरूप का बोध कराने के लिए ही किये गये हैं। जीव शब्द का अर्थ प्राण धारण करने वाला होता है। प्राण का व्यापार नहीं हो सकता। अतः सूक्ष्म शरीर जो कि नरक स्वर्ग या मानव योनी में आत्मा के साथ रहता है, उससे विशिष्ट आत्मा जीव कहलाता है। काश्मीर शैवदर्शन में जीव की धारणा स्वतन्त्र तथा विलक्षण है। पंचमहाभूतमय स्थूल शरीर वाले इस जीव में बुद्धि, अहंकार एवं मन से युक्त एक अंतःकरण भी होता है। अंतःकरण एवं पंच-तन्मात्राओं को मिलाकर एक पुर्यष्टक बनता है। वही जीव का सूक्ष्मशरीर है। तथा इन सब का केन्द्र बिन्दु शिव या चैतन्य है। वही चैतन्य (शिव) आणव मल के कारण अणू या जीव कहलाता है। इस प्रकार जो अपनी पूर्ण अहंता में शिव था। वहीं संकोच ग्रहण के कारण जीव बन जाता है। शिव संकुचित जीव रूप में प्रकट होकर उसकी शक्तियाँ, सर्वकर्तता, सर्वज्ञता, नित्यता, पूर्णता और स्वातन्त्रय संकुचित होकर जीव के आवरण रूप में परिछिन्न होती है। जीव के इन्हीं विविध आयामों पर विस्तृत व्याख्या इस लेख में की जाएगी। ताकि प्रत्यभिज्ञा दर्शन में जीव का स्वरूप स्पष्ट हो सके।

Authors and Affiliations

डाॅ0 सी0 के0 झा
एसोसिएट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, महाराणा प्रताप नेशनल काॅलेज, मुलाना, अम्बाला, हरियाणा।

काश्मीर, शैवदर्शन, जीव, सृष्टि, शक्तियाँ, सर्वकर्तता, सर्वज्ञता, नित्यता, पूर्णता।

1.  सर्वदर्शन संग्रह, पृ0 10

2. दासगुप्त, सुरेन्द्रनाथ, भा0द0इ0भाग 3, पृ0 494

3. माध्यमिक कारिका-4

4. माध्यमिक कारिका- 10.16

5. माधवाचार्य सर्वदर्शन संग्रह, पृ0 86

6. राइस डेविड, बुद्धिष्ट लौजिक, भाग-1, पृ0 3-14

7. प्रमाणवार्तिक, 2.325

8. द्रव्य संग्रह- गा0 21

9. तत्वार्थ सूत्र- 2.8

10. पंचाध्याय, 2.30

1. वही, 2.6.43

2. वही

3. द्रष्टव्य पंचाध्यायी, प्रथम अध्याय, पृ0 154-172

4. वही

5. सांख्यसूत्र- 3/84

6. द्रष्टव्य सांख्यसूत्र 6-13 की वृत्ति

7. सांख्य 2-29

8. सांख्यसूत्र 1-118

19. सांख्यसूत्र 1-160

20. योगसूत्र: 4/10 (व्यास भाष्य)

21. वही

22. माधवाचार्य, सर्वदर्शन संग्रह, पृ0 654

23. न्यायमंजरी, भाग-2, पृ0 72

24. वही, पृ0 69

25. न्याय सूत्र, 3/2/60

26. श्लोक-वार्तिक, आत्मवाद, श्लोक 73

27. ब्र0सू0शा0भा0 2/3/30

28. गंगाधर सरस्वती-वेदान्त सिद्धान्त, सूक्ति मंजरी 1/43-44

29. अद्वैत सिद्धि, पृ0 561

30. मुण्डक उपनिषद- 20/1/1

31. स0द0सं0, नकुलीश दर्शन, पृ0 307

32. वही, पृ0सं0 307

33. वही, पृ0सं0 308

34. वही, पृ0सं0 309

35. वही, पृ0सं0 309

36. सर्वदर्शन संग्रह, शैव दर्शन, पृ0 332

37. वही, पृ0सं0 334

38. वही, पृ0सं0 335

39. वही, पृ0सं0 336

40. सर्वदर्शन संग्रह, शैवदर्शन, पृ0 336

41. वही

42. ईश्वरप्रत्यभिज्ञाविमर्शिनी, पृ0 225

43. सर्वदर्शन संग्रह, शैवदर्शन, पृ0सं0 338

44. डाॅ0 चतुर्वेदी राधेश्याम, शिवदृष्टि, भूमिका, पृ0 21

45. अजड़प्रमातृसिद्धि, श्लोक-20, वृत्ति

46. अजड़प्रमातृसिद्धि, का0 16

47. स्वच्छन्दतन्त्र टीका, भाग-5, पृ0 491

48. अ0प्र0सि0 श्लोक 24

49. ईश्वरप्रत्यभिज्ञा, भाग-2, 3/1/7

50. षट्त्रिंशत तत्त्व संदोह, श्लोक 7

51. परमार्थसार, का0 16, पृ0 29

52. तन्त्रालोक टीका, भाग-6, पृ0 165

53. अ0प्र0सि0, का0 20 वृत्ति

54. अ0प्र0सि0, का0 20 वृत्ति

ई0प्र0वि0, भाग-2, पृ0 220

56. षट्त्रिंशतत्व संदोह, विवरण, पृ0 5

57. परमार्थसार, का0 60

58. सर्वदर्शनसंग्रह, प्रत्यभिज्ञा दर्शन, का0 20

59. महार्थ म´्जरी-परिमल, पृ0 32

60. प्रत्यभिज्ञा ह्रदयम्, सूत्र-8, पृ0 44

61. अ0प्र0सि0, श्लोक 18 वृत्ति

Publication Details

Published in : Volume 1 | Issue 1 | January-February 2018
Date of Publication : 2018-02-28
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 252-261
Manuscript Number : SHISRRJ1818921
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 सी0 के0 झा, "काश्मीर शैवदर्शन में जीव का स्वरूप ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 1, Issue 1, pp.252-261, January-February.2018
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1818921

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