श्रीमद्भगवद्गीता में नैतिक मूल्य

Authors(1) :-डॉ. दिवाकर मणि त्रिपाठी

श्रीमद् भगवद्गीता विश्व के महान् ग्रन्थों में से एक है। महाभारत का अंग होते हुए भी यह एक स्वतन्त्र ग्रन्थ के रुप में सुप्रतिष्ठित है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता की यह एक विख्यात ग्रन्थ है। अर्जुन ने गुरुओं के प्रति जो आदर्श भावनायें व्यक्त की हैं वह आज के हर शिष्य को अनुकरण करनी चाहिए। जिससे उनका तो कल्याण होगा ही साथ-साथ समाज का भी कल्याण होगा, इसमें लेश मात्र संदेह नहीं है।

Authors and Affiliations

डॉ. दिवाकर मणि त्रिपाठी
असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत, वी. यस. ऐ वी पी.जी कालेज, गोला, गोरखपुर, भारत

श्रीमद्भगवद्गीता, नैतिक मूल्य, महाभारत, भारतीय संस्कृति,सभ्यता।

  1. व्रहमवैवर्तपुराण 72/109
  2. व्रहमवैवर्तपुराण 72/112
  3. श्रीमद्भगवतगीता 2/4
  4. महाभारत कर्णपर्व 69/83
  5. महाभारत कर्णपर्व 69/83
  6. श्रीमद्भगवतगीता 2/5

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 2 | March-April 2019
Date of Publication : 2019-04-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 240-243
Manuscript Number : SHISRRJ192321
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. दिवाकर मणि त्रिपाठी, "श्रीमद्भगवद्गीता में नैतिक मूल्य ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 2, pp.240-243, March-April.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192321

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