Manuscript Number : SHISRRJ1925010
वाल्मीकि रामायण में धर्म आज के परिपेक्ष में उसका औचित्य
Authors(1) :-डॉ० अनिल कुमार सिंह वाल्मीकि रामायण के प्रणेता स्वयं वाल्मीकि ने समस्त महाकाव्य में इस बात को ही प्रश्रय दिया है तथा परवर्ती समाज को यह संदेश देने का प्रयास किया गया है कि धर्म की श्रेष्ठता हर युग में , हर समय प्रबल है । धर्म की रक्षा करने वाला कभी भी पराजित नहीं हो सकता। कुछ समय के लिए उसे कष्ट जरूर झेलना पड़ सकता है । परंतु उसका अंत हमेशा सुखद एवं सुफल ही होता है। महाभारत की कथा में यक्ष एवं युधिष्ठिर के बीच में जो वार्ता हुई है, यदि उसे देखा जाए तो भी यह निर्विवाद कहा जा सकता है, कि अपने भाइयों को गवां देने वाले युधिष्ठिर धर्म के बल पर ही उन्हें प्राप्त कर लेते हैं। स्वयं धर्म उनके सामने उपस्थित होकर उन्हें आशीर्वचन देता है तथा भाइयों को जीवित भी कर देता है।
वाल्मीकि के राम एक ऐसा ही नायक है, जिसने कहीं भी धर्म की ध्वजा- पताका का साथ नहीं छोड़ा। उन्होंने हमेशा सत्य की रक्षा की है ,धर्म की रक्षा की है। इसका प्रतिफल सुखद हुआ है। अधार्मिको का नाश एवं धर्म की जय ही वाल्मीकि रामायण का मूल रहा है।
डॉ० अनिल कुमार सिंह Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018 Article Preview
पूर्व शोध छात्र‚ विभाग संस्कृत‚ बी. आर. ए. बिहार विश्वविद्यालय‚ मुज़फ्फरपुर‚ बिहार‚ भारत।
Date of Publication : 2018-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 48-51
Manuscript Number : SHISRRJ1925010
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1925010