Manuscript Number : SHISRRJ1925016
काव्य में रस-तत्त्व विवेचन
Authors(1) :-डॉ॰ सुनील कुमार सिन्हा रस काव्य की आत्मा मानी जाती है। रस सहृदयों के हृदय में सर्वोपरि आनन्द का संचार करनेवाले काव्य का सारभूत तत्त्व है। रस को आस्वाद, आनन्द, काव्यानुभूति, काव्योत्कर्ष इत्यादि के अर्थ में संस्कृत काव्यशास्त्र में लिया गया है। भरत ने रसनिष्पत्ति का सूत्र बताते हुए कहा कि विभावों, अनुभावों और व्यभिचारिभावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। रससूत्र के चार प्रमुख व्याख्याकार हुए जिन्होंने संयोग और निष्पत्ति की व्याख्या की। इन चारों में अन्तिम आचार्य अभिनवगुप्त का सिद्धान्त प्राय: सर्वसम्मति से स्वीकार किया जाता है।
डॉ॰ सुनील कुमार सिन्हा काव्यशास्त्र, रससूत्र, भरत, व्याख्याकार, भट्टलोल्लट, भट्टशंकुक, भट्टनायक, अभिनवगुप्त, साधारणीकरण, संयोग, निष्पत्ति। Publication Details Published in : Volume 1 | Issue 3 | September-October 2018 Article Preview
पी॰ जी॰ टी॰ (संस्कृत) राजकीयकृत + 2 उच्च विद्यालय, जयनगर, कोडरमा, झारखण्ड, भारत।
Date of Publication : 2018-09-30
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Page(s) : 80-88
Manuscript Number : SHISRRJ1925016
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ1925016