Manuscript Number : SHISRRJ192528
आत्मकथा की संस्कृति और जीवन का श्मशान हो जाना
Authors(1) :-डाॅ. अनुराग मिश्र आधुनिक हिंदी साहित्य की गद्य-विधाओं में आत्मकथा लेखन की एक अपनी विशिष्ट भूमिका है। वस्तुपरक तटस्थता और आत्मपरक ईमानदारी के प्रतिमानों से होकर गुजरते हुए समकालीन विमर्शों के रूप में यह विधा बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में अपनी अब तक की सर्वोच्च ऊंचाई का स्पर्श करती है। आत्मकथाओं के माध्यम से दलित विमर्श ने हिंदी साहित्य के लेखन और संस्कृति की चली आ रही अवधारणाओं में प्रभावी हस्तक्षेप किया है। अस्मितामूलक विमर्श को निर्मित करने में दलित आत्मकथाओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण है. विगत तीन दशकों की दलित आत्मकथा लेखन की परंपरा में ‘मुर्दहिया’ का प्रकाशन एक युगांतकारी घटना है जिसने संवेदना, भाषा और सौंदर्यशास्त्रीय प्रतिमानों में रैडिकल परिवर्तन उपस्थित किया है. आरंभिक दलित लेखन के अंतर्विरोधों, उसकी सीमाओं और सामाजिक परिवर्तनों के रूपाकारों को समझने की दृष्टि से प्रस्तावित विषय अध्ययन का एक विचारोत्तेजक सन्दर्भ-बिंदु हो सकता है।
डाॅ. अनुराग मिश्र आत्मकथा, विमर्श, अस्मितामूलक विमर्श, सौंदर्यशास्त्र, सबाल्टर्न इतिहास लेखन।
Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, का.सु.साकेत स्नातकोत्तर महाविद्यालय, अयोध्या, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2019-10-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 164-169
Manuscript Number : SHISRRJ192528
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192528