Manuscript Number : SHISRRJ192534
भारताच्या भूक निर्देशांकाची स्थिती
Authors(1) :-प्रा. डॉ. शिंदे एस. आर. आरक्षण के माध्यम से मुफ्त में पाने की प्रवृत्ति भी लोगों में बढ़ रही है। मैं मानता हूं कि जरूरतमंदों को आरक्षण की आवश्यकता है किंतु वे जरूरतमंद केवल निम्न जाति में ही नहीं है। हां इतना जरूर कहा जा सकता है कि उनमें जरूरतमंदों की संख्या ज्यादा है। जिस प्रकार अमीर गरीब की खाई को पाटने के लिए आरक्षण की आवश्यकता हमें दिखाई पड़ते हैं उसी प्रकार ऊंच-नीच की मानसिक खाई को पाटने के लिए समानता का भाव लाना भी जरूरी है ऐसे में यदि हम जाति को खत्म करके वर्ण व्यवस्था को लाते हैं तो यह शास्त्रीय भी होगा और ऊंच-नीच का भेद भी समाप्त हो जाएगा साथ ही आरक्षण जातिगत ना होकर आवश्यकतानुसार लोगों को मिल पाएगा। यदि इस से भी ऊपर उठकर विचार किया जाए तो भगवत गीता कहती है कि यह जीव और जगत मेरा ही अंश है इस रिश्ते से सभी भाई-भाई हुए ,कोई पराया है ही नहीं ऐसे में जो आर्थिक रूप से संपन्न है वे सभी जो आर्थिक जरूरतमंद है उन्हें अपना भाई समझ कर बिना किसी प्रचार के सेवा करेंगे तो यह समस्या समाप्त हो सकती हैं।
प्रा. डॉ. शिंदे एस. आर. आरक्षण, जाति, आर्थिक मानसिक, गरीब, मुफ्त। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 5 | September-October 2019 Article Preview
अर्थशास्त्र विभाग, कला व वाणिज्य महाविद्यालय, पुसेगांव ता.खटाव जी. सातारा
Date of Publication : 2019-10-30
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Page(s) : 194-198
Manuscript Number : SHISRRJ192534
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192534