Manuscript Number : SHISRRJ192613
संस्कृत नाटकों में शिक्षा-व्यवस्था
Authors(2) :-डॉ. गटुलाल पाटीदार, पुष्पेन्द्र कुमार सेवक भारतीय मनीषियों ने मानव के भौतिक तथा आध्यात्मिक विकास हेतु शिक्षा को महŸवपूर्ण माना है। शिक्षा शब्द शिक्ष्-धातु ध´् प्रत्यय से बना है। शिक्षा का अर्थ है व्यक्ति का अनुशासित एवं सम्यक् विकास जिसके द्वारा व्यक्ति अपनी तथा अपने समाज की उन्नति कर सके। शिक्षा वेद के छः अंगों में से एक अंग है। ‘‘शिक्षा घ्राणं तु वेदस्य‘‘ शिक्षा को वेद का नाक कहा गया है। आश्रम व्यवस्था के अन्तर्गत ब्रह्मचर्य आश्रम का प्रधान उद्देश्य ही विद्या की प्राप्ति करना है। शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति अनुशासित होकर विविध ऋणों से मुक्ति हेतु प्रयत्न करता है। शिक्षित व्यक्ति अपने इहलोक को सुधारता है साथ ही पारलौकिक सुख प्राप्ति हेतु भी शुभ कर्मों में प्रवृŸा होता है। इसके द्वारा मानव ईश्वर$जीव$प्रकृति के रहस्य को जानता है। धर्म$अर्थ$काम$मोक्ष इन पुरुषार्थ चतुष्ट्य की प्राप्ति भी शिक्षा द्वारा ही सम्भव होती हैं। वह माता-पिता, आचार्य अतिथि की सेवा करता है तथा प्राणी मात्र के कल्याण हेतु सतत् प्रयत्नशील रहता है। शिक्षा द्वारा ही व्यक्ति का सर्वाङ्गीण विकास होता है। श्रीमद्भगवद्गीता में ज्ञान को सर्वाधिक पवित्र बताया गया है। न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते। तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ।। शिक्षा के लिए हमारे प्राचीन ग्रन्थ कहते आये हैं-‘‘प्रथमे निर्जिता विद्या, द्वितीये नार्जितम् धनम्। तृतीये न तपस्तप्तम्, चतुर्थे किम् करिष्यति।।‘‘ अर्थात् प्रथम अवस्था में यदि विद्या अर्जित न हो, द्वितीय में यदि धन अर्जित न हो, तृतीय में यदि पुण्य अर्जित न हो और चैथी अवस्था में अर्थात् वृद्धावस्था में मनुष्य तब क्या ही कर पायेगा।‘‘ यहाँ पर संस्कृत के प्रमुख रूपकों में शिक्षा के अधिकार, तात्कालिक शिक्षा व्यवस्था, स्त्री-पुरुष शिक्षण, स्वास्थ्य शिक्षण, अनिवार्य एवं निःशुल्क प्रारम्भिक शिक्षण, साहित्यिक एवं सांस्कृतिक शिक्षण एवं नारी शिक्षा पर परिशीलन किया जा रहा हैं।
डॉ. गटुलाल पाटीदार संस्कृत, नाटक, रूपक, शिक्षा, अधिकार, शिक्षक, शिक्षण, स्त्री-पुरुष Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019 Article Preview
सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.), भारत
पुष्पेन्द्र कुमार सेवक
संस्कृत विभाग, मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय,मोहनलाल सुखाड़िया, उदयपुर (राज.), भारत
Date of Publication : 2019-12-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 56-72
Manuscript Number : SHISRRJ192613
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192613