Manuscript Number : SHISRRJ192629
श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान युग में प्रासंगिकता
Authors(1) :-डाॅ0 ऋतु शुक्ला महाभारत में भीष्म पर्व में वर्णित तथा वेदान्त दर्शन के प्रस्थानत्रयी में स्थान प्राप्त भगवान् श्रीकृष्ण की अमृतवाणी श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति का अत्यन्त लोकप्रिय दार्शनिक काव्य है जिसने द्वापर में मोहग्रस्त अर्जुन को धर्मयुक्त कर्मक्षेत्र में प्रवृŸा किया था। गीता समस्त कालों मंे सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक एवं उपादेय है जिसका ज्ञान सार्वकालिक एवं सर्वदेशीय है। वर्तमान युग में मानव जीवन के विभिन्न द्वन्द्वों, कर्Ÿाव्य-अकर्Ÿाव्यों, विधेय-त्याज्य इत्यादि परिस्थितियों, व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक समस्त समस्याओं का समुचित समाधान भगवद्गीता में अन्तर्निहित है। वर्तमान युग में मानव की समस्या का मुख्य कारण विषयों के प्रति उसकी आसक्ति एवं मोहग्रस्तता है। सुखाय प्रवृŸिा मनुष्य को प्रतिकूल परिस्थियाँ, दुःख, आकांक्षित विषयभोग प्राप्त न होने की स्थिति में अत्यधिक तनाव तथा मानसिक द्वन्द्व के कारण उसका मनोबल कमजोर हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह गलत निर्णय लेता चला जाता है तथा कुछ तो आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कृत्य भी कर बैठते हैं। इन स्थितियों में भगवद्गीता की प्रासंगिकता सिद्ध होती है। सम्पूर्ण गीता ऐसे अनेकानेक उपदेशों से परिपूर्ण है जो मानव को धैर्य धारण कर कर्Ÿाव्य अकर्Ÿाव्य का बोध कराते है। गीता में वर्णित धार्मिक सहिष्णुता, निष्काम कर्मयोग, लोकसंग्रह, स्थितप्रज्ञ इत्यादि अनेकानेक सिद्धान्त है जिनकी वर्तमान युग में महती प्रासंगिकता है। प्रस्तुत शोधपत्र में श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धान्तों एवं उपदेशों की वर्तमान युग में प्रासंगिकता पर गहन विचार विमर्श किया गया है।
डाॅ0 ऋतु शुक्ला श्रीमद्भगवद्गीता, कर्मयोग, लोकसंग्रह, स्थितप्रज्ञ, महाभारत, श्रीकृष्ण, प्रस्थानत्रयी। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020 Article Preview
असि0 प्रोे0 (संस्कृत), राजकीय महाविद्यालय तिलहर, शाहजहाँपुर।,भारत
Date of Publication : 2020-02-28
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Page(s) : 93-98
Manuscript Number : SHISRRJ192629
Publisher : Shauryam Research Institute
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