श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान युग में प्रासंगिकता

Authors(1) :-डाॅ0 ऋतु शुक्ला

महाभारत में भीष्म पर्व में वर्णित तथा वेदान्त दर्शन के प्रस्थानत्रयी में स्थान प्राप्त भगवान् श्रीकृष्ण की अमृतवाणी श्रीमद्भगवद्गीता भारतीय संस्कृति का अत्यन्त लोकप्रिय दार्शनिक काव्य है जिसने द्वापर में मोहग्रस्त अर्जुन को धर्मयुक्त कर्मक्षेत्र में प्रवृŸा किया था। गीता समस्त कालों मंे सम्पूर्ण विश्व के लिए प्रासंगिक एवं उपादेय है जिसका ज्ञान सार्वकालिक एवं सर्वदेशीय है। वर्तमान युग में मानव जीवन के विभिन्न द्वन्द्वों, कर्Ÿाव्य-अकर्Ÿाव्यों, विधेय-त्याज्य इत्यादि परिस्थितियों, व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और वैश्विक समस्त समस्याओं का समुचित समाधान भगवद्गीता में अन्तर्निहित है। वर्तमान युग में मानव की समस्या का मुख्य कारण विषयों के प्रति उसकी आसक्ति एवं मोहग्रस्तता है। सुखाय प्रवृŸिा मनुष्य को प्रतिकूल परिस्थियाँ, दुःख, आकांक्षित विषयभोग प्राप्त न होने की स्थिति में अत्यधिक तनाव तथा मानसिक द्वन्द्व के कारण उसका मनोबल कमजोर हो जाता है। ऐसी स्थिति में वह गलत निर्णय लेता चला जाता है तथा कुछ तो आत्महत्या जैसे कायरतापूर्ण कृत्य भी कर बैठते हैं। इन स्थितियों में भगवद्गीता की प्रासंगिकता सिद्ध होती है। सम्पूर्ण गीता ऐसे अनेकानेक उपदेशों से परिपूर्ण है जो मानव को धैर्य धारण कर कर्Ÿाव्य अकर्Ÿाव्य का बोध कराते है। गीता में वर्णित धार्मिक सहिष्णुता, निष्काम कर्मयोग, लोकसंग्रह, स्थितप्रज्ञ इत्यादि अनेकानेक सिद्धान्त है जिनकी वर्तमान युग में महती प्रासंगिकता है। प्रस्तुत शोधपत्र में श्रीमद्भगवद्गीता के सिद्धान्तों एवं उपदेशों की वर्तमान युग में प्रासंगिकता पर गहन विचार विमर्श किया गया है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 ऋतु शुक्ला
असि0 प्रोे0 (संस्कृत), राजकीय महाविद्यालय तिलहर, शाहजहाँपुर।,भारत

श्रीमद्भगवद्गीता, कर्मयोग, लोकसंग्रह, स्थितप्रज्ञ, महाभारत, श्रीकृष्ण, प्रस्थानत्रयी।

  1. डाॅ0 राममूर्ति पाठक - ’भारतीय दर्शन की समीक्षात्मक रुपरेखा’ पृ0 41
  2. श्रीमद्भगवद्गीता - अध्याय 13 श्लोक 2
  3. श्रीमद्भगवद्गीता - 21-23
  4. श्रीमद्भगवद्गीता - 31
  5. श्रीमद्भगवद्गीता - 44
  6. श्रीमद्भगवद्गीता - 73
  7. चंचलं ही मनः कृष्ण प्रमाथि बलवट्ठृढ़म्।
  8. तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम्।। गीता. 34
  9. असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम्।
  10. अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते।। गीता 35
  11. गीता. 58
  12. गीता 5
  13. यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।
  14. तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्।। गीता 21
  15. येऽप्यन्यदेवता भक्ता यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
  16. तेऽपि मामेव कौन्तेय यजन्त्यविधिपूर्वकम्।। 23
  17. गीता - 5
  18. कर्मणैव हि संसिद्धिमास्थिता जनकादयः।
  19. लोकसंग्रहमेवापि सम्पश्यन्कर्तुमर्हसि।। गीता 20
  20. गीता - 25
  21. गीता - 46
  22. वराहपुराण

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020
Date of Publication : 2020-02-28
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 93-98
Manuscript Number : SHISRRJ192629
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 ऋतु शुक्ला, "श्रीमद्भगवद्गीता की वर्तमान युग में प्रासंगिकता", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 1, pp.93-98, January-February.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ192629

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