Manuscript Number : SHISRRJ192672
भारवि और माघ: एक अध्ययन
Authors(1) :-डाॅ0 ज्योति माघ के महाकवि होने में तनिक भी संदेह नहीं है बहुलों का अनुमान है कि माघ के साम्प्रदायिक प्रेम से उत्तेजित होकर अपने पूर्ववर्ती ‘भारवि’ से बढ़ जाने के लिए बड़ा प्रयत्न किया है। भारवि शैव थे अथवा कम से कम शिव के बड़े भक्त थे। इनका काव्य शिव के वरदान के विषय में है। माघ वैष्णव थे। इन्होंने विष्णु-विषयक महाकाव्य की रचना की हैं अतएव महाकाव्य में विष्णु के पूर्णावतार श्रीकृष्ण के द्वारा शिशुपाल के मारे जाने का विस्तृत वर्णन है। वह स्वयं अपने ग्रन्थ को ‘लक्ष्मीपतेश्चरितकीत्र्तनमात्रचारू’ कहते हैं। भारवि से बढ़ जाने के लिए माघ ने कुछ भी नहीं उठा रखा है। ‘किरातार्जुनीय’ को अपना आदर्श मानकर भी माघ ने अपने काव्य में बहुत कुछ अलौकिक चमत्कार पैदा कर दिया है। किरात के समान ही माघकाव्य भी मंगलार्थक ‘श्री’ शब्द से आरंभ होता है। किरात के आरंभ में ‘श्रियः कुरूणामधिपस्य पालिनी’ है, उसी प्रकार माघ के प्रारंभ में श्रियः पतिः श्रीमति शासितुं जगत् है।
डाॅ0 ज्योति Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 1 | January-February 2020 Article Preview
एम.ए., पीएच.डी. (संस्कृत) बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार), भारत।
Date of Publication : 2020-01-30
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Page(s) : 166-169
Manuscript Number : SHISRRJ192672
Publisher : Shauryam Research Institute
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