वेदों में प्रतिपादित कुटुम्ब की अवधारणा

Authors(1) :-डॉ. दिवाकर मणि त्रिपाठी

वैदिक साहित्य का पर्यालोचन करने के पश्चात् यह अनुभव होता है तत्कालीन समाज में जहाँ पुरुष को कुटुम्ब का नेता माना जाता था वहीं नारी को भी सम्मानीय स्थान प्राप्त था। उसके बिना किसी प्रकार की भी धार्मिक क्रियाएं सम्पन्न नहीं हो सकती थी। पुत्री को पुत्र के समय अधिकार प्राप्त थे। वह उच्च शिक्षा प्राप्त कर सकती थी। अतः इसीलिए वैदिक परिवार समुन्नत एवं सुखी दिखाई देता है।

Authors and Affiliations

डॉ. दिवाकर मणि त्रिपाठी
असिस्टेंट प्रोफेसर संस्कृत, वी. यस. ऐ वी पी.जी कालेज, गोला, गोरखपुर, भारत

वैदिक साहित्य, वेद, कुटुम्ब, मनुष्य, मौलिक, पारिवारिक।

  1. ऋग्वेद 10-85-42
  2. अथर्ववेद 2/30/1
  3. अथर्ववेद 2/30/2
  4. अथर्ववेद 2/25/3
  5. ऋग्वेद  10/85/46
  6. ऋग्वेद  10/48/1
  7. मनुस्मृति 9/138

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 6 | November-December 2019
Date of Publication : 2019-12-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 47-49
Manuscript Number : SHISRRJ19269
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. दिवाकर मणि त्रिपाठी, "वेदों में प्रतिपादित कुटुम्ब की अवधारणा", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 6, pp.47-49, November-December.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ19269

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