आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अथर्ववेदीय शिक्षा सिद्धान्तों की उपयोगिता

Authors(1) :-डॉ॰ संजीव कुमार

अथर्ववेदीय शिक्षा में नैतिक एवं आध्यात्मिक विकास, प्रजातान्त्रिक मूल्य एवं सामाजिक उन्नति के बहुविध संकेतों का पूर्ण ही प्रदर्शन किया जा चुका है। राष्ट्रीय एकता के लिए-ब्रहचर्येण तपसा राज राष्ट्र विरक्षति इत्यादि मन्त्र द्रष्टव्य है। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भारत ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण विश्व में अथर्ववेदीय शिक्षा सिद्धान्तों के अनुरूप शिक्षा की व्यवस्था की जानी चाहिए। अथर्ववेदीय शिक्षा ही मानवीय समस्याओं का समाधान प्रस्तुत कर सकती है। अथर्ववेदीय शिक्षा-बेरोजगारी, व्यवसाय, जनसंख्या, व्याधि, अनैतिकता, इत्यादि सभी समस्याओं का समाधान करके मानव को सुख शांति एवं समृद्धि के सर्वोच्च शिखर पर आसीन कर सकती है।

Authors and Affiliations

डॉ॰ संजीव कुमार
प्रवक्ता (हिन्दी) , शिक्षा निदेशालय, दिल्ली सरकार

अथर्ववेदीय, शिक्षा, नैतिक, आध्यात्मिक, राष्ट्रीय, शिक्षा-बेरोजगारी, व्यवसाय, जनसंख्या, व्याधि, अनैतिकता।

  1. शिक्षा के सामान्य सिद्धान्त, डॉ. पाठक, पृ.- 525
  2. अथर्व. 11/5/7
  3. अथर्व. 11/5/2
  4. शि. सि. पृ. 310
  5. शिक्षा के सामान्य सिद्धान्त , पृ. 315 (डॉ. पाठक)
  6. अथर्व. 11/5/24
  7. अथर्व. 1/1/3
  8. अथर्व. 10/8/9
  9. अथर्व. 13/2/10
  10. अथर्व0 11 / 3 / 4
  11. अड्.गादङ्गात् वयमस्या अप यक्ष्म नि दध्मणि।
  12. मनुस्मृति

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019
Date of Publication : 2019-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 260-269
Manuscript Number : SHISRRJ193324
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ॰ संजीव कुमार, "आधुनिक परिप्रेक्ष्य में अथर्ववेदीय शिक्षा सिद्धान्तों की उपयोगिता ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 1, pp.260-269, January-February.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ193324

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