Manuscript Number : SHISRRJ193336
कामायनी में पर्यावरण-चेतना
Authors(1) :-डाॅ0 मधु शर्मा पर्यावरण शब्द परि एवम् आ उपसर्ग पूर्वक वृञ् आवरणे धातु से ल्युट् प्रत्यय करने पर निष्पन्न होता है। वर्तमान युग में पर्यावरण प्रदूषण एक विश्वव्यापिनी समस्या है। वैदिक काल से ही भारतीय मनीषी पर्यावरण-संरक्षण के प्रति सजग रहे हैं। उन्हीं के अनुवर्तन पर छायावाद के प्रतिनिधि कवि जयशंकर प्रसाद अपनी कालजयी कृति कामायनी में प्राकृतिक उपादानों को पर्यावरण संरक्षण का हेतु मानते हैं। उनकी दृष्टि में प्रकृति के अंतर्गत वन, पर्वत, नदी, निर्झर, आदि के रूप में पर्यावरणीय संरक्षणात्मक विराट् चेतना विद्यमान है। प्रसाद जी के मत में प्रकृति चेतनायुक्त सत्य और सजीव है ।यहां तक कि उन्होंने पशु-पक्षी आदि को भी पर्यावरण संरक्षण का हेतु स्वीकार किया है ।इसके अतिरिक्त उन्होंने यज्ञीय-अनुष्ठानों को भी पर्यावरण संरक्षण में पर्याप्त सहायक सिद्ध किया है।
डाॅ0 मधु शर्मा कामायनी, नैसर्गिक, सामञ्जस्य, शोधक, प्राकृतिक-सम्पदा, अनुष्ठान, सर्वांगीण, अतिभौतिकता। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 1 | January-February 2019 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, नानकचन्द ऐंग्लो संस्कृत महाविद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश।, भारत।
Date of Publication : 2019-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 330-335
Manuscript Number : SHISRRJ193336
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ193336