महाभारत के आदिपर्व में वर्णित राजधर्म: एक अध्ययन

Authors(1) :-डॉ. अशोक कुमार वर्मा

आदिपर्व के अन्तर्गत राजधर्म के कुछ तथ्यों का वर्णन हमें यत्र-तत्र प्राप्त हो जाता है जिससे तात्कालिक राजव्यवस्था का दृष्टान्त कुछ अंशों में प्रतिभासित हो जाता है जो हमारे ज्ञानवर्धन में सहायक होता है।

Authors and Affiliations

डॉ. अशोक कुमार वर्मा
सहायक आचार्य, संस्कृत विभाग, जवाहर लाल नेहरू स्मारक पी0जी0 कालेज, महराजगंज,उत्तर प्रदेश।, भारत।

महाभारत,आदिपर्व,राजधर्म, राजव्यवस्था।

  1. यदि राजा न संरक्षेत् पीडा नः परमा भवेत्।। महाभारत, आदिपर्व 41/22
  2. न शक्नुयाम चरितुं धर्मं पुत्र यथासुखम्।। महाभारत, आदिपर्व 41/23
  3. अराजके जनपदे दोषा जायन्ति वै सदा। उद्वृत्तं सततं लोकं राजा दण्डेन शास्ति वै।। महाभारत, आदिपर्व 41/27
  4. दण्डात् प्रतिभयं भूयः शान्तिरुत्पद्यते तदा।। महाभारत, आदिपर्व 41/28
  5. राज्ञा प्रतिष्ठितो धर्मो धर्मात् स्वर्गः प्रतिष्ठितः राज्ञो यज्ञक्रियाः सर्वा यज्ञाद् देवाः प्रतिष्ठिताः।। महाभारत, आदिपर्व 41/29
  6. देवाद् वृष्टिः प्रवर्तेत वृष्टोरोषध्यः स्मृताः। ओषधिभ्यो मनुष्याणां धारयन् सततं हितम्।। महाभारत, आदिपर्व 41/30
  7. मनुष्याणां च यो धाता राजा राज्यकरः पुनः। दशश्रोत्रियसमो राजा इत्येवं मनुरब्रवीत।। महाभारत, आदिपर्व 41/31
  8. धृतराष्ट्रस्त्वचक्षुष्ट्वाद् राज्यं न प्रत्यपद्यत। पारसवत्वाद् विदुरो राजा पाण्डुर्बभूव ह।। महाभारत, आदिपर्व 108/25
  9. वेदे षडङ्गे निरताः शुचयः सत्यवादिनः। धर्मात्मानः कृतात्मानः स्युर्नृपाणां पुरोहिताः।। महाभारत, आदिपर्व 169/75
  10. यस्तु स्यात् कामवृत्तोऽपि पार्थ ब्रह्मपुस्कृतः। ब्राह्मणप्रमुखं राज्यं शक्यं पालयितुं चिरम्।। महाभारत, आदिपर्व 169/73-80
  11. पुरोहितमिमं प्राप्य........धर्मकामार्थतत्त्ववित्।। महाभारत, आदिपर्व 173/11-15
  12. तत उत्कोचकं तीर्थं गत्वा धौम्याश्रमं तु ते। ते धर्मविदा पार्था याज्या धर्मविदः कृताः।। महाभारत, आदिपर्व 182/6-10
  13. उत्सिक्ताः पाण्डवा नित्यं तेभ्योऽसूये द्विजोत्तम।
  14. ततः सहायांस्तत्पक्षान् सर्वांश्च तदनन्तरम्।। महाभारत, आदिपर्व 139/3-16
  15. फलोर्थोऽयं समारम्भो.........घटमिवाश्मनि।। महाभारत आदिपर्व 139/21-22
  16. न विश्वसेदविश्वस्ते विश्वस्ते नातिविश्वसेत्। विश्वासाद् भययुत्पन्नं मूलान्यपि निकृन्तति।। महाभारत, आदिपर्व 139/62
  17. नातश्चतुर्थं प्रसवमापत्स्वपि वदन्त्युत। अतः परं स्वैरिणी स्याद्बन्धकी पंचमे भवेत्।। महाभारत, आदिपर्व 122/77

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020
Date of Publication : 2020-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 319-323
Manuscript Number : SHISRRJ203100
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डॉ. अशोक कुमार वर्मा, "महाभारत के आदिपर्व में वर्णित राजधर्म: एक अध्ययन ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 5, pp.319-323, September-October.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203100

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