Manuscript Number : SHISRRJ2033138
भारत में शारीरिक शिक्षा का उद्भव एवं विकास
Authors(1) :-डॉ. आरती शर्मा सत्त्वमात्मा शरीरं च त्रयमेतत् त्रिदण्डवत्।
लोकस्तिष्ठति संयोगात् तत्र सर्वं प्रतिष्ठितम्॥ (चरक)
अर्थात् मन आत्मा और शरीर ये तीनों (घड़ा रखने की) तिपाई के समान हैं। जीवसृष्टि इनके संयोग से खड़ी है और उसमें (कर्मफलादि, सुखदुःखादि) सर्व अधिष्ठित है। जिस प्रकार तिपाई के तीन पायों में से एक पाया न होने पर तिपाई खड़ी नहीं हो सकती, उसी प्रकार आत्मा, मन और पंचभौतिक शरीर इनमें से एक के न होने से जीव-सृष्टि उत्पन्न नहीं हो सकती। आत्मा एवं मन की स्वस्थता हेतु शरीर का स्वस्थ रहना नितान्त आवश्यक है। शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक शिक्षा भी जरूरी है। इस प्रकार प्राचीन काल से वर्तमान तक शारीरिक शिक्षा की विकास यात्रा की एक झलक इस पत्र के माध्यम से प्रस्तुत की जा रही है।
डॉ. आरती शर्मा भारत, शारीरिक, शिक्षा, प्राचीन, वर्तमान, विकास, यात्रा। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 1 | January-February 2022 Article Preview
सहायकाचार्य (शिक्षापीठ), श्री लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय (केन्द्रीय विश्वविद्यालय), नई दिल्ली, भारत।
Date of Publication : 2022-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 159-163
Manuscript Number : SHISRRJ2033138
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2033138