Manuscript Number : SHISRRJ203315
महाभारत के प्रमुख ऋषि
Authors(2) :-डॉ0 जी.एल. पाटीदार, रिपन कुमार इस लघुलेख का उद्देश्य महाभारत कालीन ऋषि परम्परा को समझना, महत्ता को प्रतिपादित करना, साधारण जनमानस के समक्ष ऋषि अधिकार कर्त्तव्यों को उद्घाटित करना, महाभारत कालीन एवं वर्तमान कालीन ऋषि परम्परा का स्थान स्थापित करना, तथा साथ ही वर्तमान सामाजिक जीवन में ऋषि परम्परा संबन्धों का स्थान निर्धारण करना ही मुख्य उद्देश्य हैं। जिससे समाज में ऋषि-महर्षियों के प्रति जानकारी प्राप्त हो सकेगी, जिसे सामान्य जन इनकी जीवनियों को सुनकर पढ़कर अपने जीवन में आत्मसात कर जीवन को गुणकारी-सरस-सुगम बना सकें। मानव के वर्त्तमान अस्तित्व को खतरें में देख कर आचरण धर्म की प्रधानता ओर अधिक बड़ जाती है, इस आचरण धर्म का पाठ आचार्य ही पढ़ा सकता है, आज राजा तो है पर ऋषि नहीं है इसी कारण राजसत्ता भी खतरें में ही दिख रहीं है। राजा के गलत निर्णयों पर बोलने वाला महर्षि आज अदृश्य है, इसीलिए राजसत्ता अहंकारयुक्त हो गयी है। सर्वत्र स्वार्थ लिप्सा के कारण संकट में लिए गए निर्णय भी दूषित हो रहें है, क्योकि निस्वार्थ निर्णय करने वाले ऋषियों का अभाव सा है। तप सत्य का ज्ञाता और निर्भीक ही ऋषि है। अनादि काल से हजारों संकटों के बाद भी मानव धर्म बच गया है, इन्हीं ऋषिओं के तप के कारण पर आज सम्पूर्ण जीव धर्म संकट में है। आओं पृथ्वी, ऋषि और सत्य को बचाने का प्रयास करते है।
डॉ0 जी.एल. पाटीदार साहित्य, वेद, संस्कृत, ऋषि, महर्षि, शिष्य, गुरु, महाभारत, जय, वेदव्यास । Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020 Article Preview
सहायक आचार्य, संस्कृत-विभाग, मोहनलाल सुखाडि़या विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज.), भारत
रिपन कुमार
सहायक आचार्य, लालबहादुरशास्त्री राजकीय महाविद्यालय, सरस्वती नगर, शिमला (हिमाचल प्रदेश), भारत
Date of Publication : 2020-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 60-74
Manuscript Number : SHISRRJ203315
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203315