Manuscript Number : SHISRRJ2033321
महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटकों में नीति-विषयक सन्दर्भ
Authors(1) :-डाॅ0 अंजलि उपाध्याय ‘‘महाकवि कालिदास’’ भारतीय तथा पाश्चात्य, उभयविध दृष्टियों से संस्कृत के मुकुटमणि कवि माने जाते है। नाट्य कला की सुन्दरता, काव्य की वर्णन शैली और गीतिकाव्य के रसोद्गार कालिदास की प्रतिभा की सर्वातिशयता को प्रकट करते है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् महाकवि कालिदास का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जिसे न केवल भारतीय अपितु पूरे विश्व साहित्य में अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। कालिदास ने अपनी कृतियों में जिस राजनैतिक व्यवस्था का वर्णन किया है उससे ज्ञात होता है कि तात्कालिक शासन का स्वरूप राजतंत्रात्मक था। राजा का पद पूर्णतः पैतृक एवं दैवीय माना जाता था, किन्तु असीमित शक्तियों से सम्पन्न राजा निरंकुश एवं अभिमानी नहीं था। प्रजार×जन एवं उनके संरक्षण में ही राजा का यश निहित था। महाकवि ने ‘शाकुन्तलम्’ में राजा के कत्र्तव्य का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया है कि राजपद सुख प्राप्ति के लिए नहीं है अपितु निष्ठापूर्वक अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के लिए है। प्रजापालन के अतिरिक्त वाह्य आक्रमण से राज्य की रक्षा करना, वर्णाश्रम धर्म की रक्षा करना, राज्य में धर्म एवं नैतिकता की स्थापना करना इत्यादि राजा के कत्र्तव्य थे। महाकवि ने अनेक स्थलों पर सेनापति, पुरोहित, अमात्य, नागरिक, गुप्तचर आदि का उल्लेख किया है। राज्य की सुरक्षा हेतु राजा के पास विशाल सेना होती थी। कालिदास ने राजनीति के विषय में जो विचार व्यक्त किये है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजपद पूर्णतः धर्म पर आश्रित था।
डाॅ0 अंजलि उपाध्याय महाकवि कालिदास, अभिज्ञानशाकुन्तलम्, नाटक, नीति-विषयक, राज्य व्यवस्था। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020 Article Preview
पी0 एच-डी0 (संस्कृत) भारत।
Date of Publication : 2020-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 197-207
Manuscript Number : SHISRRJ2033321
Publisher : Shauryam Research Institute
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