महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटकों में नीति-विषयक सन्दर्भ

Authors(1) :-डाॅ0 अंजलि उपाध्याय

‘‘महाकवि कालिदास’’ भारतीय तथा पाश्चात्य, उभयविध दृष्टियों से संस्कृत के मुकुटमणि कवि माने जाते है। नाट्य कला की सुन्दरता, काव्य की वर्णन शैली और गीतिकाव्य के रसोद्गार कालिदास की प्रतिभा की सर्वातिशयता को प्रकट करते है। अभिज्ञानशाकुन्तलम् महाकवि कालिदास का सबसे प्रसिद्ध नाटक है, जिसे न केवल भारतीय अपितु पूरे विश्व साहित्य में अत्यन्त गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त है। कालिदास ने अपनी कृतियों में जिस राजनैतिक व्यवस्था का वर्णन किया है उससे ज्ञात होता है कि तात्कालिक शासन का स्वरूप राजतंत्रात्मक था। राजा का पद पूर्णतः पैतृक एवं दैवीय माना जाता था, किन्तु असीमित शक्तियों से सम्पन्न राजा निरंकुश एवं अभिमानी नहीं था। प्रजार×जन एवं उनके संरक्षण में ही राजा का यश निहित था। महाकवि ने ‘शाकुन्तलम्’ में राजा के कत्र्तव्य का उल्लेख करते हुए यह स्पष्ट किया है कि राजपद सुख प्राप्ति के लिए नहीं है अपितु निष्ठापूर्वक अपने उत्तरदायित्वों का निर्वाह करने के लिए है। प्रजापालन के अतिरिक्त वाह्य आक्रमण से राज्य की रक्षा करना, वर्णाश्रम धर्म की रक्षा करना, राज्य में धर्म एवं नैतिकता की स्थापना करना इत्यादि राजा के कत्र्तव्य थे। महाकवि ने अनेक स्थलों पर सेनापति, पुरोहित, अमात्य, नागरिक, गुप्तचर आदि का उल्लेख किया है। राज्य की सुरक्षा हेतु राजा के पास विशाल सेना होती थी। कालिदास ने राजनीति के विषय में जो विचार व्यक्त किये है उसके आधार पर यह कहा जा सकता है कि राजपद पूर्णतः धर्म पर आश्रित था।

Authors and Affiliations

डाॅ0 अंजलि उपाध्याय
पी0 एच-डी0 (संस्कृत) भारत।

महाकवि कालिदास, अभिज्ञानशाकुन्तलम्, नाटक, नीति-विषयक, राज्य व्यवस्था।

  1. त्वचं स मेध्यां परिधाय रौखीमंशिक्षितासु पितुरेव मंत्रवत्।
  2. न केवलं तद्गुरुरेक पार्थिवः क्षिताव भूदेक धनुर्धरोपि सः। - रघु0 3-33
  3. शास्त्रेष्वकुण्ठित बुद्धिः। रघु0 1-29 विद्यानांपारदृश्वनः। रघु0 1-23
  4. भानुः सकृत् युक्त तुरंग एव रात्रिन्दिवं गन्धवहः प्रयाति।
  5. शेषः सदैववाहित भूमिभारः षष्ठांशवृत्तेरपि धर्म एषः।।- शाकु0 5-4
  6. तदुपस्थितमग्रहीदजः पितुराज्ञेति न भोग तृष्णया। - रघु0 8-2
  7. प्रशमयसि विवादम्- अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/8
  8. न कश्चिद्वर्णानामपथमपकृष्टेऽपि भजते।- अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5-10
  9. स्वाम्यमात्यसुहृत कोषराष्ट्रदुर्ग वलानि च। अमरकोश
  10. तथैव सोऽभूदन्वर्थो राजा प्रकृति रंजनात्। रघु0 4-12
  11. येन येन वियुज्यन्ते प्रजाः स्निग्धेन बन्धुवा।
  12. सस पापा{ते तासां दुष्यन्त इतिधुष्टताम्।। अभि0 6-23
  13. अभिज्ञानशाकुन्तलम्- अ{ 5
  14. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/4
  15. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/5, शा0 6/23
  16. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/6
  17. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/7
  18. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/8
  19. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-5/35
  20. आर्य, कति दिवसान्यवयोर्मित्रावसुना राष्ट्रियेण भट्टिनीपादमूलं प्रेषितयोः। इत्थं च नौ प्रमदवनस्य पालनकर्म समर्पितम्। तदागन्तुकतयाऽश्रुतपूर्व आवाभ्यामेष वृतान्तः।- अभिज्ञानशाकुन्तलम्-षष्ठ अ{, पृ0 326
  21. तदत्रपरिगतार्थकृत्वा मद्वचनादमात्यपिशुनं ब्रूहि-
  22. त्वन्मतिः केवलया तावत् परिपालयतु प्रजाः।
  23. अधिज्यमिदमन्यस्मिन् कर्माणि व्यापृतं धनुः।। शाकुन्तलम् 6-32
  24. सख्युस्ते स किल शतक्रतोखध्यः तस्य त्वं रणशिरसि स्मृतो निहन्ता।- शाकुन्तलम् 6-30
  25. रघु0 4-34, 5-9, 9-4, 15-42
  26. एकः कृत्स्नां नगरपरिधं प्रांशुवाहु र्भुनक्ति। शाकुन्तलम् 2-16
  27. भानुः सकृद् युक्त तुरंग एवं रात्रिन्दिवं गन्धवहः प्रयाति।
  28. शेषः सदैव वाहित भूमिभारः षष्ठांश वृत्तेरपि धर्म एषः।। शाकु0 5-4
  29. शाकुन्तलम्- अ{ 2
  30. नीवार षष्ठभागमस्माकमुहरन्विति। शाकु0 अ{ 2
  31. तान्युंछषष्ठांकित सैकतानि। रघु0 5-8
  32. अन्यद्भागधेयमेतेषां रक्षये निपतति। शाकुन्तलम्, द्वितीय अ{ 1
  33. रघु0 17-64 एवं अभिज्ञानशाकुन्तलम् अंक 6
  34. शाकुन्तल, अ{ 5
  35. एष यम सदनं प्रविश्य प्रतिनिवृत्तः। अभिज्ञानशाकुन्तलम्, षष्ठम अ{, पृ0 200
  36. गृध्रबलिर्भविष्यसि। - अभिज्ञानशाकुन्तलम्, षष्ठम अ{, पृ0 99
  37. नौ व्यसने विपन्नः। - अभिज्ञानशाकुन्तलम्, षष्ठम अ{, पृ0 121
  38. क्रमान्निवेश्यमानासु सेनासु वन्दिपरिग्रहेषुपरीद यामणेषु पुस्तक प्रामाणात्।
  39. कुताश्चिदप्यविज्ञायमानौ द्वौ वनौकसौगृृहीतौ। - अभिज्ञानशाकुन्तलम्, चतुर्थ अ{, पृ0 82
  40. अभिज्ञानशाकुन्तलम्- चतुर्थ अ{, पृ0 67
  41. भो भो बलाध्यक्ष। सन्नाहमाज्ञापयवानरवाह्निीम्। - अभिज्ञानशाकुन्तलम्, चतुर्थ अ{, पृ0 67
  42. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-7/26
  43. अभिज्ञानशाकुन्तलम्-1/32
  44. अंगुलीयक दर्शनमस्य विमर्शयितव्यम्। राजकुलमेव गच्छामः।- अभि0 षष्ठम् अ{, पृ0 18
  45. ततः प्रविशति नागरिकः श्यालः पश्चाद्धद्धपुरुषमादाय रक्षिणौ च।- अभिज्ञानशाकुन्तलम्, षष्ठम अ{, पृ0 97
  46. अभिज्ञानशाकुन्लतम्, षष्ठम अ{, पृ0 97

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 3 | May-June 2020
Date of Publication : 2020-06-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 197-207
Manuscript Number : SHISRRJ2033321
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 अंजलि उपाध्याय, "महाकवि कालिदास के अभिज्ञानशाकुन्तलम् नाटकों में नीति-विषयक सन्दर्भ ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 3, pp.197-207, May-June.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2033321

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