वैदिक संस्कृति में संगीत चिकित्सा (म्यूजिक थैरेपी)

Authors(1) :-डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा

सारांश- विश्व भर में सर्वाधिक प्राचीन ‘वैदिक साहित्य’ है। जीवन के सभी नैतिक-अनैतिक मूल्यों का समाधान वेदों में प्राप्त होता है। भारत या विश्व में जितने सम्प्रदाय धर्म एवं मतमतांतर हैं, वे सभी वैदिक पृष्ठभूमि पर ही स्थापित हुए। ‘ऐतिहासिक दृष्टि से सभ्यता का विकास क्रम का यह एक प्रकार है, कि यूरोप में सभ्यता रोम और यूनान के सम्पर्क से पहुँची। रोम में यूनान के द्वारा सभ्यता का उन्मेष हुआ। यूनान में भारत और मिस्त्र से सभ्यता पहुँची मिस्त्र को भारत ने सभ्यता का पाठ पढाया, इस तथ्य को सभी इतिहासज्ञ स्वीकार करते हैं।’ वैदिक साहित्य, जीवन के विभिन्न किया-कलापों की एक विशाल संहिता है। वेदों की एक शाखा आयुर्वेद भी कही गई है जो ‘अथर्ववेद’ का मुख्य अंग है। आयुर्वेद को पाँचवा वेद इसलिए कहा गया है, क्योंकि इसमें शरीर -मन-इंद्रिय और आत्मा का संयोग है। जिस प्रकार नाठयशास्त्र यानी संगीत का मूल आधार स्वरों का मंद्र- मध्य तथा तारता है, उसी प्रकार आयुर्वेद या वैधशास्त्र में वात-कफ-पित्त के स्वरूप में संतुलन होना आवश्यक है। मानव मन कभी एकरस नहीं रहता, या तो वह उन्नति की ओर अग्रसर होगा या अवनति की ओर लुढकेगा। यदि मन को सही दिशा-निर्देश मिलता है, तो उसके अनुरूप व्यक्ति अपने आपको ढाल लेने का प्रयत्न करता है। सरोदवादक तरुण महाचार्य ने स्वर-सरिता जयपुर में उल्लेख दिया है- किसी राजा को गाते हुए या किसी को सुनते हुए यदि दो पल का सुकून मिलता है, तो यही ‘म्यूजिक थैरेपी’ हैं। निःसंदेह संगीत की मेलोडीज यदि हमें अंतरत्म से प्रभावित करती है तो इसे ही ‘म्युजिक थैरेपी’ समझना चाहिए। कला और विज्ञान का परस्पर मेल ही संगीत - चिकित्सा या ‘म्यूजिक थैरेपी’ है। जीवन को सुखमय बनाने के लिए ही मनोचिकित्सकों वैज्ञानिकों और मनोवैज्ञानिकों ने संगीत को चिकित्सा से जोड़ा है, लेकिन उस संगीत को जिसमें आध्यात्म, दर्शन और धर्म की गहराई हो। म्यूजिक थैरेपी में संकल्प की दृढता होना भी जरुरी है जिसके लिए सत्संग होना चाहिए। संगीत और उपासना का परस्पर अटूट सम्बन्ध रहा है। इसी कारण उपासना म्यूजिक थैरेपी का विशेष अंग माना गया है। डा० प्रवेश सक्सैना अपनी पुस्तक ‘वेदो में क्या है’ में लिखते हैं, कि ‘वेदो में ओइम्’ इन अक्षरों का महत्व है। सभी वेदों का सार ओइम को बताया गया है। ढाई अक्षर का यह शब्द तीन प्रकार की शांति को दर्शाता है- शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक। ओइम के उच्चारण या जाप से तनाव शिथिल होता है। मन पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह एक ऐसी भाषा है, जो सबको समझ में आती है। ‘‘मंत्र शक्ति के प्रयोग ऋषि-मुनियों ने आरम्भ से किये हैं। आज के वैज्ञानिक भी मानने लगे हैं कि शब्द शक्ति इलैक्ट्रोनिक मैग्नेटिक लहरें, उत्पन्न करती हैं। जो स्नायु तंत्र पर वांछित प्रभाव डालकर उनकी सक्रियता को तो बढाती ही हैं, साथ ही विकृत चिंतन को भी रोकती है मनोविकारों को दूर करती है। एक ही मंत्र का बार-बार गायन करने पर कैसे तनाव भी धीरे-धीरे शिथिल होने लगता है। इस पर अनेक प्रयोग-परीक्षण किये जा चुके हैं, जिसे विदेशों में सायमैटिक्स अध्यन की परम्परा कहा जाता है।’’ सच्चे सुर और लय का संगीत ही मन के बिखरेपन को समेटकर सुकून देता है। इसी कारण मनोवैज्ञानिकों और चिकित्सकों ने मनोरोगों के उपचार हेतु ऐसे संगीत को स्थान दिया, जिसके प्रभाव हमारे अंत मन तक पहुंच सके।

Authors and Affiliations

डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, चै0 शिवनाथ सिंह शाण्डिल्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, माछरा, मेरठ,उत्तर प्रदेश, भारत।

वैदिक, संस्कृति, संगीत, चिकित्सा, नैतिक-अनैतिक, मूल्य।

  1. संगीत - चिकित्सा - डा० महारानी शर्मा
  2. संगीतायन - डा० सीमा चैधरी
  3. कलाविहार- पत्रिका
  4. संगीत पत्रिका - लक्ष्मी नारायण गर्ग
  5. संगीत बोध - डा0 शरत चन्द्र श्रीधर
  6. ध्वनि और संगीत
  7. संगीत शाखा 1958- के0 वासुदेव शास्त्री
  8. नारदीय शिक्षा - मैसूर
  9. भारतीय संगीत में वृन्दावन - डा० नारायण मेनन

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 4 | July-August 2020
Date of Publication : 2020-07-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 79-82
Manuscript Number : SHISRRJ203357
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा, "वैदिक संस्कृति में संगीत चिकित्सा (म्यूजिक थैरेपी) ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 4, pp.79-82, July-August.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203357

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