षट्कर्म के आलोक में धौतिकर्म की विधि एवं उसका लाभ

Authors(1) :-मनमोहन कुमार

धौतिकर्म में चार अंगुल चैड़े और पन्द्रह हाथ लम्बे महीन वस्त्र को जल में भिंगोकर थोड़ा निचोड़ने के बाद गुरुपदिष्ट मार्ग से धीरे-धीरे निगलने का अभ्यास करना चाहिए। निगलने से पहले पूरा जल पी लेना आवश्यक है। इससे कपड़े निगलने में सुविधा तथा कफ-पित्त का उसमें सटकर बाहर निकलना आसान हो जाता है जिससे मन शान्त और प्रसन्न रहता है।

Authors and Affiliations

मनमोहन कुमार
शोध छात्र, विश्वविद्यालय दर्शनशास्त्र विभाग, बी.आर.ए. बिहार विश्वविद्यालय, मुजफ्फरपुर (बिहार)

  1. यौगिक षट्कर्म (योग की शरीर-शोधन क्रियाएॅं), डाॅ. अयोध्या प्रसाद ‘अचल’, चैखम्बा सुरभारती प्रकाशन, वाराणसी, पृष्ठ-1.
  2. योग दर्शन (योग औपनिषदीय दृष्टिकोण), स्वामी निरजनानंद सरस्वती, योग पब्लिकेशन्स ट्रस्ट, मुंगेर, बिहार, भारत, पृष्ठ
  3. महीन वस्त्र नरम सो लीजे। तीन हाथ की धोती कीजे।।
  4. चार अंगुल चैड़ी परमाना। ताको निगले शक्ति अनमाना।।30।। हठयोग मंजरी, गुरु गोरखनाथ के शिष्य श्री सहजानंद नाथ योगी कृति। कैवल्यधाम श्रीमन्माधव योगमन्दिर समिति लोनावला (पुणे), पृष्ठ-19.
  5. मुखसोबाहिर काढि पाणीसो धोवे। धौतिकर्म महासुख होवे।।
  6. स्वास कास कफ पित्त न होई। अष्ट रोग पित्त रहे न कोई।।31।। वही, पृष्ठ-20.
  7. हठयोग विद्या, ब्रह्मलीन श्री 1008 स्वामी योगेश्वरानन्द
  8. सरस्वती जी महाराज, योग निकेतन ट्रस्ट, पृष्ठ
  9. कासश्वासप्लीहाकुष्ठं कफरोगाश्च विंशति: ।
  10. धौतिकर्मप्रभावेन प्रत्र्यातेव न संशयः।। (2/25)-हठयोग प्रदीपिका
  11. अन्तधौतिर्दन्त धौतिर्हृद्वौतिर्मूलशोधनम्।
  12. धौतिं चतुर्विधां कृत्वा घटं कुर्वन्तु निर्मलम् ।।13।।
  13. घेरण्ड-संहिता (योगत्त्वम्), व्याख्याकारः आचार्य श्रीनिवास शर्मा,
  14. पृष्ठ-5.
  15. वातसारं वारिसारं वह्निसारं बहिष्कृतम।
  16. घटस्य निर्मलार्थाय अन्तर्धौतिश्चतुर्विधा।।14।।, वही, पृष्ठ
  17. काकच´्चुवदास्येन पिबेद्वायुं शनैः शनैः।
  18. चालयेदुदरं पश्चाद्वत्र्मना रेचयेच्छनैः ।।15।।, वही, पृष्ठ
  19. वातसारं परं गोप्यं देहिनिर्मलकारणम्।
  20. सर्वरोगक्षयकरं देहानलविवर्द्धकम्।।16।। वही, पृष्ठ
  21. आकणठं पूरयेद्वारि वक्त्रेण च पिबेच्छनैः ।
  22. चालयेदुदरेणैव चोदराद्रेचयेदधः ।।17।।, वही, पृष्ठ 6
  23. सम्पूर्ण योग विद्या, राजीव जैन ‘‘त्रिलोक’’ पृष्ठ 440
  24. हठयोग का परिचय, डाॅ. नितिन ढ़ोमणे, पृष्ठ 73-74.
  25. ‘‘काकी मुद्रां शोधयित्वा पुरये दुदरं मरुत।’’
  26. घरेण्ड-संहिता (योगत्त्चम्), आचार्य श्रीनिवास शर्मा (पृष्ठ 8)
  27. हठयोग का परिचय, डाॅ. नितिन ढ़ोमणे, पृष्ठ 74-75.
  28. दन्तमूलं जिह्नामूलं रन्ध्रं च कर्णयुग्मयोः।
  29. कपालरन्ध्रं पं´्चैते दन्तधौतिर्विधीयते।। (घे.सं. 1/25)
  30. समपूर्ण योग विद्या, राजीव जैन ‘त्रिलोक’, पृष्ठ
  31. हठयोग का परिचय, डाॅ नितिन ढ़ोमणे, पृष्ठ
  32. वही, पृष्ठ
  33. वही, पृष्ठ
  34. घेरण्ड-संहिता (योगत्वम्) आचार्य श्रीनिवास शर्मा, पृष्ठ
  35. हठयोग के सिद्धांत, डाॅ. नवीन चन्द्र भट्ट, नेहा पाण्डेय, पृष्ठ
  36. हृदयधौतिं त्रिविधां कुर्यादण्डवमनवाससा। (घे.सं. 1/35)
  37. हठयोग का परिचय, डाॅ नितिन ढ़ोमणे, पृष्ठ 76-77.
  38. घेरण्ड-संहिता (योगत्वम्) आचार्य श्रीनिवास शर्मा, पृष्ठ
  39. हठयोग के सिद्धांत डाॅॉ नवीन चन्द्र भट्ट, नेहा पाण्डेय, पृष्ठ 111-112.
  40. वही, पृष्ठ

Publication Details

Published in : Volume 2 | Issue 4 | July-August 2019
Date of Publication : 2020-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 50-62
Manuscript Number : SHISRRJ203510
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

मनमोहन कुमार , "षट्कर्म के आलोक में धौतिकर्म की विधि एवं उसका लाभ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 2, Issue 4, pp.50-62, July-August.2019
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203510

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