भारत का अभ्युदय

Authors(1) :-Kirit Debnath

इस आलेख में मैंने भारत के प्रख्यात अयाचक ऋषि अखंडमंडलेश्वर श्री श्री स्वामी स्वरूपानंद परमहंस देव (श्री श्री बाबामणि) के ब्रह्मचर्य और स्वदेश की सेवा, ब्रह्मचर्य और अन्य धर्मों आदि प्रति सहिष्णुता आदि पर उनके विचारों की आलोचना की है।

Authors and Affiliations

Kirit Debnath
Senior Research Scholar, Department of Hindi, Presidency University, Kolkata, India

ब्रह्मचर्य, आधुनिकता, अभ्युदय।

  1. आलोच्य कथन में श्री श्री स्वामी स्वरूपानंद परमहंसदेव ने ब्रह्मचर्य साधना के उपायों की बात की है। उनका यह दीर्घ कथन ॐ अखंड-संहिता अथवा श्री श्री अखंडमंडलेश्वर श्री श्री स्वरूपानंद परमहंसदेव की उपदेश वाणी नामक पुस्तक के दूसरे खंड की पृष्ठ संख्या, 385, में वर्णित है। यह पुस्तक समय-समय पर अपने शिष्यों, भक्तों आदि को विभिन्न विषयों पर समय-समय पर दिए गए उपदेशों, विभिन्न अवसरों पर दिए गए भाषणों एवं लिखे गए पत्रों संकलन है। इस पुस्तक के कुल चौबीस खंड हैं। इस आलेख के लिए दूसरे खंड को आधार बनाया है।
  2. उपरिवत, पृष्ठ संख्या, 160 आलोच्य पृष्ठ में उन्होंने ब्रह्मचर्य आंदोलन और कर्म के विषय में बताया है।
  3. उपरिवत पृष्ठ संख्या, पृष्ठ संख्या,161 और 162 ब्रह्मचर्य आश्रम कर्म-क्षेत्र है।
  4. उपरिवत पृष्ठ संख्या, 162 और 163 मानव निर्माण की बात
  5. वहीं पुस्तक, पृष्ठ संख्या, 82
  6. उपरिवत, पृष्ठ संख्या, 385, सहिष्णुता
  7. उपरिवत, पृष्ठ संख्या, 271

Publication Details

Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020
Date of Publication : 2020-09-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 21-28
Manuscript Number : SHISRRJ20354
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

Kirit Debnath, "भारत का अभ्युदय", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 3, Issue 5, pp.21-28, September-October.2020
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20354

Article Preview