Manuscript Number : SHISRRJ20377
पातंजल योगदर्शन में प्राणायाम का स्वरूप
Authors(1) :-डॉ० उमाकान्त यादव प्राणायाम मनोविरोध का अमोघ अस्त्र है जिसके माध्यम से हम मन को नियंत्रित करके अपनी प्राणशक्ति का विकास करने में समर्थ होते हैं। यहाँ ध्यातव्य है कि प्राण और मन का घनिष्ठ सम्बन्ध है। दोनों में से एक को भी नियंत्रित कर लिया जाय तो दूसरा स्वयं नियंत्रित हो जाता है। मन के नियंत्रित होने पर ही साधक धारणा, ध्यान एवं समाधि की ओर अग्रसर होता है। प्राणायाम से मस्तिष्क की सूक्ष्म और सुप्त शक्तियाँ जागृत होती हैं जिसके फलस्वरूप मानस रोग यथा तनाव आदि नष्ट होते हैं। वर्तमान काल में प्राणायाम चिकित्सा के माध्यम से असाध्य रोगों का निवारण भी हो रहा है। वस्तुतः प्राणायाम से नाड़ी संस्थान, पाचन संस्थान, श्वसन संस्थान और रक्त संचार सभी सक्रिय हो जाते हैं जिससे उनकी कार्यक्षमता बढ़ जाती है। अतः प्राणायाम का अभ्यास करें और अपनी सामथ्र्य बढ़ायें तथा रोग-मुक्त होकर जीवन का आनन्द लें।
डॉ० उमाकान्त यादव प्राणायाम, योगदर्शन, पातंजल, मनोविरोध, जीवन-आनन्द, मन,मानव-शरीर। Publication Details Published in : Volume 3 | Issue 5 | September-October 2020 Article Preview
प्रोफेसर, संस्कृत विभाग, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2020-09-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 159-163
Manuscript Number : SHISRRJ20377
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ20377