Manuscript Number : SHISRRJ203912
साम्प्रतिक काव्यप्रयोजन-विमर्श
Authors(2) :-अनुज कुमार द्विवेदी, डाॅ. देवनारायण पाठक
आचार्य द्विवेदी ने अपनी नवनवोन्मेषी प्रतिभा के द्वारा काव्यप्रयोजन की वर्तमान परिप्रेक्ष्य के आधार पर विवेचना प्रस्तुत की है। अन्य आचार्यों की भाँति इनका काव्यप्रयोजन-विवेक अनेक दृष्टिकोणों से पृथक् एवं विशिष्ट प्रतीत होता है। प्राचीन काव्यशास्त्रकारों ने जहाँ पुरुषार्थ-चतुष्टय की प्राप्ति तथा सहृदयह्लादकत्व को काव्य का प्रमुख प्रयोजन माना है, उसके सापेक्ष अर्वाचीन काव्यशास्त्री आचार्यों ने देशकाल की परिस्थिति के अनुरूप काव्यप्रयोजनों का उल्लेख किया है।
अनुज कुमार द्विवेदी प्रतिभा, काव्यप्रयोजन, अर्वाचीन,संस्कृत, काव्यशास्त्र, आचार्य, प्रो0 रहसबिहारी द्विवेदी। Publication Details Published in : Volume 2 | Issue 3 | May-June 2019 Article Preview
वरिष्ठ शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय, प्रयागराज,उत्तर प्रदेश।
डाॅ. देवनारायण पाठक
संस्कृत-विभागाध्यक्ष नेहरू ग्राम भारती मानित विश्वविद्यालय, प्रयागराज,उत्तर प्रदेश।
Date of Publication : 2019-05-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 189-192
Manuscript Number : SHISRRJ203912
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ203912