Manuscript Number : SHISRRJ21411
आर्ष महाकाव्यों में तीर्थ स्थल
Authors(2) :-डॉ0 जी.एल. पाटीदार, नीतू शर्मा रामायण और महाभारत को आर्ष महाकाव्य कहा जाता है। रामायण और महाभारत प्रादुर्भाव काल से भारतीय सनातन धर्म, संस्कार, संस्कृति और सभ्यता के आदर्श ग्रंथ रहे हैं। सनातन भारतीय संस्कृति में तीर्थों का अपना विशिष्ट महत्व है। वैदिक काल से लेकर अत्यावधि तक तीर्थों को आधार बनाकर कई रचनाओं का सृजन हुआ है। तथा रचनाधर्म में वर्णनाधिक्य भी देखा गया है, जो हमारी सनातन संस्कृति के संवर्धक एवं पोषण का कार्य कर रहा है। तीर्थों की उत्कृष्टता का अद्भुत दर्शन हमें आर्ष काव्यों में भी दिखाई देता है। भारतीय सनातन संस्कृति में तीर्थ धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व वाले स्थानों को कहा जाता है। हमारी सनातन संस्कृति में तीर्थ स्थान पवित्रता और पावनत्व के सूचक है, तथा परमतत्त्व कैवल्य के मार्ग। मानव जीवन की यात्रा का परम ध्येय मोक्षत्त्व प्राप्त करना ही है, और उसके साधन यही पवित्र धाम रहें है। मनुष्य ने जब भी देवत्व का रूप धारण किया, और वह जिन स्थानों-स्थलों पर निवास भ्रमण किया वे पवित्र तीर्थ हो गएँ। इस आलेख में आर्ष काव्यों में तीर्थ स्थलों का महत्त्व नाम सहित प्रतिपादित किया जा रहा है, तथा मानव जीवन में इनकी महत्ता भी ।
डॉ0 जी.एल. पाटीदार आर्ष, तीर्थ, काव्य, महाकाव्य, रामायण, महाभारत, वाल्मीकि, वेदव्यास, यात्रा, पुष्कर, ऋषि, श्रीराम, आदि। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021 Article Preview
असिस्टेंट प्रोफेसर, संस्कृत विभाग
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज०), भारत।
नीतू शर्मा
शोधकर्त्री, संस्कृत विभाग,
मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर (राज०), भारत।
Date of Publication : 2021-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-12
Manuscript Number : SHISRRJ21411
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21411