Manuscript Number : SHISRRJ2142217
भारतीय संगीत और नारी
Authors(1) :-डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा सभ्यता से वर्तमान तक की जीवन यात्रा में नारी की उपयोगिता उसका महत्त्व और उसके दर्जे में भी उतार-चढ़ाव आते रहे हैं, लेकिन इन सभी विभिन्नताओं के बावजूद भी भारतीय संस्कृति में नारी की माँ और देवी शक्ति के रूप में दर्जा हमेशा ऊँचा रहा है। हमारे आचार्यगण भी व्यवहारिक जीवन की शिक्षा में ‘‘मातृदेवी भव, पितृदेवो भव, आचार्य देवो भव’ कहते थे। इनमें माता का स्थान गुरू और पिता से पहले है। कला मानव-संस्कृति का प्राण है, जिसमें मन तथा शरीर की अनुभूति निहित है। संगीत के गायन, वादन और नृत्य तीनों क्षेत्रों में महिलाओं ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय संगीत परम्परा की भाँति महला सभ्यता भी अति प्राचीन है। वैदिक काल में भी अपाला, लोपामुद्रा, घोषा आदि संगीत की अच्छी ज्ञाता थीं। महाकाव्य काल में राज्य सभाओं में भी संगीतकला में निपुण महिलाओं को राजकलाकार के रूप में नियुक्त किया जाता था। बौद्ध-साहित्य तथा जैन ग्रन्थों में भी नारियों द्वारा मधुर गायन का उल्लेख मिलता है। गुप्तकाल भारतीय इतिहास में कला साहित्य और संगीत की दृष्टि से स्वर्ण युग कहलाता था। इस युग में स्त्री को शिक्षा के अधिकार से पूर्णतः वंचित किया गया। गुप्तकाल से मुगल साम्राज्य के पतन तक का इतिहास एक ओर भारतीय नारी के आत्म बलिदान की कहानी है तो दूसरी ओर घर की चार दीवारी की अंध कोठरी में कैद होने की मर्म भेदी दास्तान। बीसवीं शताब्दी का आरम्भ केवल भारत के स्वतंत्र युग का ही क्रान्तिकाल नहीं है अपितु संगीत कला की दृष्टि से भी अनोखी क्रान्ति का युग माना जा सकता है। संगीत के आकाश में दो नक्षत्रों- पं0 विष्णु नारायण भातखंडे एवं पं0 विष्णु दिगम्बरपुलस्कर का उदय हुआ जिन्होंने नारी वर्ग को संगीत साधना के सुअवसर प्रदान कराए। वर्तमान में कुछ महिलाओं ने अनेक संघर्षों के बाद संगीत जगत में ऐसे मानदंड स्थापित किए हैं जो अविस्मरणीय रहेंगे। ऐसी महान महिला कलाकारों में स्वर साम्राज्ञी लता मंगेशकर को उत्कृष्ट पाश्र्व गायिका एवं एम0एस0 सुब्बलक्ष्मी हीला को भारतीय शास्त्रीय गायिका के रूप में सारा संसार जानता है। आज के परिप्रेक्ष्य में आकाशवाणी, दूरदर्शन के साथ-साथ छोटे व बड़े पर्दे पर पर भी महिला कलाकार आकर्षण का केन्द्र रहीं हैं। नारी शक्ति है, यह केवल अतीत का विषय नहीं, आज भी वह शक्ति है। केवल इस शक्ति को पहचानने की जरूरत है नये और पुराने विचारों की दुविधा से निकल उसकी अच्छाइयों को चुनने और उसमें तालमेल बैठाने की जरूरत है।
डाॅ0 अनिल कुमार शर्मा संगीत, साधना, नारी, संस्कृति, इतिहास। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 2 | March-April 2021 Article Preview
एसोसिएट प्रोफेसर, हिन्दी विभाग, चै0 शिवनाथ सिंह शाण्डिल्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, माछरा, मेरठ
Date of Publication : 2021-04-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 184-188
Manuscript Number : SHISRRJ2142217
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ2142217