Manuscript Number : SHISRRJ214230
श्रीमद्भागवतमहापुराण में वैराग्य विद्या का दिग्दर्शन
Authors(1) :-डॉ. सुमन इस संसार में जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त सुख-दुःख का सिलसिला निरन्तर चलता रहता है। मनुष्य अपनी साधारण दृष्टि से जिसे सुख समझता है, वह भी क्षणिक, दुःखमिश्रित एवं दुःखरूप ही सिद्ध होता है। इसलिए विवेकी व्यक्ति दुःख की आंशिक एवं आत्यन्तिक निवृत्ति के लिए सदा प्रयत्नशील रहते हैं। दुःख की अत्यन्त निवृत्ति (मोक्ष) कैसे हो- इसी का एक प्रमुख उपाय वेद, उपनिषद्, दर्शन, मनुस्मृति, रामायण, गीता, महाभारत, पुराण व अन्य काव्य तथा महाकाव्यों में वैराग्य को बताया गया है। इस क्लेश-बहुल संसार में सुखात्मकता की भावना का उद्भावक कोई भी प्रकारन्तर नहीं दीखता। समस्त भूमण्डल के विवेचक, महर्षि पतञ्जलि के इस सूत्र से सहमत हैं- परिणामतापसंस्कारदुःखैर्गुण- वृत्तिविरोधाच्च दुःखमेव सर्वं विवेकिनः परिणाम, ताप, संस्कार व दुःखों से और सत्त्व, रज, तम गुणों के स्वभावों में परस्पर विरोध होने से विवेकी (योगी) के लिए सब दुःख ही है अर्थात् लौकिक सुख भी दुःख के समान ही है।
भर्तृहरि ने तो वैराग्यशतकम् में यहाँ तक कह दिया कि संसार में वैराग्य के अतिरिक्त अन्य कोई वस्तु ऐसी नहीं जो पूर्णरूप से अभय देने वाली हो। एकमात्र वैराग्य भाव ही सब ओर से निर्भीकता प्रदान करने वाला है-
भोगे रोगभयं कुले च्युतिभयं, वित्ते नृपालाद् भयं,
मौने दैन्यभयं बले रिपुभयं रूपे जराया भयम्।
शास्त्रे वादभयं गुणे खलभयं काये कृतान्ताद् भयं,
सर्वं वस्तु भयान्वितं भुवि नृणां वैराग्यमेवाभयम्॥1
वैराग्य के लिए शरीर की रचना को समझना आवश्यक है। विषयों में रमण करने वाले सांसारिक भोगियों की प्रकृति स्वतः ही वासनाओं की मूर्त्तरूप देह की ओर अधिक देखी जाती है। इसी के द्वारा वे इस देह से सुख-दुःख, भय, शोक, रोग, भोग आदि परिणाम तथा फल निरन्तर प्राप्त किया करते हैं। दूसरी ओर योगी इसी काया के द्वारा त्याग भाव से अनासक्त होकर अपने भोगों की निवृत्ति तथा भोगों की कामना को नष्ट करके परम सुख मोक्ष की ओर चल पड़ते हैं।
डॉ. सुमन ज्ञान, तृष्णा, मुक्ति, अध्यात्म, निःश्रेयस, उपरति। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 5 | September-October 2021 Article Preview
प्रोफेसर पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय, हरिद्वार
Date of Publication : 2021-09-30
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Page(s) : 22-27
Manuscript Number : SHISRRJ214230
Publisher : Shauryam Research Institute
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