Manuscript Number : SHISRRJ214429
भारतेन्दु युग के नाटक : आधुनिक रंगमंच का उत्थान
Authors(1) :-आकाश कुमार भारतेन्दु-युग पुनर्जागरण का युग था। सामाजिक बुराइयों के खिलाफ संघर्ष करने के इस युग में सामाजिकता की भावना पर बल दिया गया। खंड-खंड बँटे इस समाज को एक सूत्र में पिरोने की बात की गई। विभिन्न समाजसुधारक संगठनों में यह पद्धति देखी जा सकती है (आर्य समाज, प्रार्थना समाज आदि) । इसलिए इस युग में अगर नाटक की विधा ने जोड़ पकड़ा तो आश्चर्य की बात नहीं हैं। भारतेंदु मण्डली के लेखकों ने विभिन्न नाटकों का अनुवाद हिंदी में किया, स्वयं नाटकों की रचना की और इससे आगे बढ़कर उनका मंचन भी किया। यह तत्कालीन समय की जरूरत भी थी और नाटक विधा के साथ तर्कसंगत न्याय भी। भारतेंदु युग के लेखकों ने राष्ट्रीय रंगमंच निर्मित करने की दिशा में काम किया। आधुनिक हिंदी गद्य साहित्य की शुरुआत नाटकों से हुई, इसके पीछे संस्कृत और लोकनाट्य की परंपरा मौजूद थी जिसे इस युग के लेखकों ने पुनर्जीवित किया। इस दौर के नाटकों ने कैसे नाटक जैसी विधा को विकसित किया इसपर यह शोधपत्र केन्द्रित है।
आकाश कुमार नाटक, रंगमंच, दृश्यकाव्य, भारतेंदु, प्रसाद, नाट्यशास्त्र, नाट्य| Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 4 | July-August 2021 Article Preview
सहायक प्राध्यापक (हिंदी),दाउदनगर महाविद्यालय, दाउदनगर, औरंगाबाद, बिहार
Date of Publication : 2021-08-10
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 56-60
Manuscript Number : SHISRRJ214429
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214429