जनार्दन प्रसाद ‘मणि’ विरचित सौरभेयी: एक अध्ययन

Authors(1) :-डाॅ0 देवनारायण पाठक

प्रो0 जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ जी का जन्म 2 अक्टूबर 1962 को ‘शकरा’ ग्राम जौनपुर जनपद में हुआ था। इनकी शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हुयी थी, आपने वर्ष 1984 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ‘एम0ए0 (संस्कृत) की परीक्षा मंे विश्वविद्यालयीय वरीयता सूची में गौरवपूर्ण स्थान प्राप्त किया, आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से ‘नाट्यशास्त्र’ में उपलब्ध काव्यशास्त्रीय तत्वों का समीक्षात्मक अध्ययन विषय पर डाॅक्टर आॅफ फिलासॅफी (डी0फिल्0) की उपाधि अर्जित किया। इसके बाद राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय लैसंडाॅन जयहरिखाल पौड़ी गढ़वाल में प्राध्यापक के पद पर नियुक्त हुए, इसके बाद केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय गंगानाथ झा परिसर इलाहाबाद में रीडर के रूप में नियुक्त हुए तथा सम्प्रति में वही प्रोफेसर एवं अध्यक्ष साहित्य विभाग पद को अलंकृत कर रहे हैं। सौरभेयी एक संस्कृत गीतिकाव्य है, इसमें तैंतिस (33) एवं (25) अन्योक्तियाँ तथा प्रयाग शिखरिणी गंगा शिखरिणी तथा के शीर्षक से कुछ पद्य है। इसका प्रकाशन 2019 वैशम्यायन प्रकाशन इलाहाबाद से हुआ। कवि ने सौरभेयी गीतिकाव्य में स्वोपज्ञ छन्द के द्वारा जीवन के विविध मर्म को विविध विषयों के साथ धर्म का अनुसरण करते हुए अभिव्यक्त किया है। इस गीतिकाव्य में ‘मणि’ जी ने स्वोपज्ञ छन्द के अतिरिक्त कवि द्वारा शिखरिणी एवं मुक्तक छन्दों का भी प्रयोग यदा-कदा परिलक्षित होता है।

Authors and Affiliations

डाॅ0 देवनारायण पाठक
उपाचार्य, पूनम देवी (वरिष्ठ शोध अध्येता), संस्कृत विभाग, नेहरू ग्राम भारती मानित्, विश्वविद्यालय, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश।, भारतम्

राष्ट्रीय समस्या, लोकविडम्बना, रूपसौन्दर्य, प्र्राकृतिक परिवेश, वैश्विक परिवेश।

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 1 | January-February 2021
Date of Publication : 2021-01-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 227-230
Manuscript Number : SHISRRJ21447
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ0 देवनारायण पाठक, "जनार्दन प्रसाद ‘मणि’ विरचित सौरभेयी: एक अध्ययन ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 1, pp.227-230, January-February.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21447

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