Manuscript Number : SHISRRJ21471
अभिनवशुकसारिका में वृत्तिविषय
Authors(1) :-राजेन्द्र प्रसाद वृत्ति के विषय को वैदिक साहित्य से लेकर लौकिक साहित्य तक के प्रायः सभी ग्रन्थों में वर्णित किया गया है । इस वृत्तिविषय के वर्णन की परम्परा में आधुनिक काल के विद्वानों नें भी अपनी लेखनी से प्राचीन काल की वृत्तियों के साथ नवीन वृत्तियों को भी उल्लेखित किया है। जिनमें आधुनिक संस्कृत साहित्य के मूर्धन्यविद्वान, कवि, लेखक, समीक्षक, अभिनव रचनाधर्मी आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी का नाम सर्वोपरि परिगणित किया जाता है। आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी ने अपने साहित्य में अनेक नवीन वृत्तियोें को उद्घाटित किया है, जो वैदिक काल, रामायण और महाभारत की वर्ण व्यवस्था से इतर वर्तमान समय के आधार पर वृत्ति के प्रकारों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है प्रथम शासकीय वृत्ति द्वितीय अशासकीय वृत्ति । आचार्य त्रिपाठी ने दोनों वृत्तियों का उल्लेख किया है जिनमें उनकी प्रसिद्ध कृतियां है- अभिनवशुकसारिका, विक्रमचरितम्, उपाख्यानमालिका, अन्यच्च, ताण्डवम्, अनुभववीथी, स्मितरेखा और आत्मनाऽऽत्मानम् आदि में इन वृत्तियों के विभिन्न प्रकार सर्वाधिक संख्या में प्राप्त होते है।
राजेन्द्र प्रसाद संस्कृत, वाङ्मय, वृत्ति, आचार्य राधावल्लभ त्रिपाठी, अभिनवशुकसारिका, गद्यसाहित्य। Publication Details Published in : Volume 4 | Issue 6 | November-December 2021 Article Preview
शोधच्छात्र, संस्कृत विभाग, डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय सागर (म.प्र), भारत।
Date of Publication : 2021-11-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 91-96
Manuscript Number : SHISRRJ21471
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ21471