सर्वांगीण विकास में योग की भूमिका

Authors(1) :-डाॅ सुभाषचन्द्र मीणा

सर्वागीणं व्यक्तित्व विकास हेतु योगाभ्यास एक आवश्यक अंग है। आर्यसमाज का नियम है कि समाज का उपकार करना इस समाज का प्रमुख उद्येश्य है ।26 शारीरिक व्यक्तित्व का विकास बिना शारीरिक या आत्मिक विकास के सम्भव नही है। योग द्वारा व्यक्तिगत जीवन की उन्नति को समाज के लिए उपयोगी बनाया जा सकता है अर्थात् व्यक्ति में जितने अच्छे गुण होंगे समाज उतना ही उत्कृष्ट होता जाएगा। आज के युग में जहाँ प्रत्येक व्यक्ति आगे निकलने की होड़ में दौड़ता है वहाँ समाज में घृणा/द्वेष का भाव उतना ही ज्यादा होता है । इन सभी द्वेष भावनाओं से छुटकारा योग ही दिलवा सकता है।

Authors and Affiliations

डाॅ सुभाषचन्द्र मीणा
सहायकाचार्य (व्याकरण विभाग), केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, क. जे. सोमैया परिसर, मुम्बई।, भारत।

सर्वागीण, व्यक्तित्व, विकास, योग, समाज, शारीरिक, आत्मिक, पतंजली।

  1. पतञ्जली कृत योग सूत्र एवं याज्ञवल्क्यस्मृति
  2. अभिज्ञानशामुन्तलम्
  3. पातंजल योगसूत्र 2-28-29
  4. भगवत्गीता कर्मयोग
  5. पातंजल योगसूत्र-31
  6. हठयोग10-11
  7. योगसूत्र35
  8. वशिष्ठ धर्मसूत्र41
  9. शतपथ ब्राह्मण
  10. व्यासभाष्य 2-36
  11. योगसूत्र 2-34
  12. योगसूत्र 2-39
  13. ईशोपनिषद्
  14. पातंजल योगसूत्र 2-32
  15. योगसूत्र
  16. सुखलाभ योगसूत्र (2.42)
  17. व्यासभाष्य
  18. यमनियम
  19. धर्मसूत्र55
  20. योगसूत्र43
  21. स्मृतिग्रन्थ
  22. व्यासभाष्य28
  23. योगसूत्र
  24. गीता
  25. योगसूत्र
  26. आर्यसमाज नियम
  27. पातंजलि योगसूत्र
  28. अथर्ववेद

Publication Details

Published in : Volume 4 | Issue 6 | November-December 2021
Date of Publication : 2021-11-30
License:  This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 165-170
Manuscript Number : SHISRRJ214782
Publisher : Shauryam Research Institute

ISSN : 2581-6306

Cite This Article :

डाॅ सुभाषचन्द्र मीणा, "सर्वांगीण विकास में योग की भूमिका ", Shodhshauryam, International Scientific Refereed Research Journal (SHISRRJ), ISSN : 2581-6306, Volume 4, Issue 6, pp.165-170, November-December.2021
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ214782

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