Manuscript Number : SHISRRJ22124
प्राचीन भारत में स्त्रियों की स्थिति का विश्लेष्ण :- ऋग्वैदिक काल से गुप्त काल तक
Authors(1) :-राहुल कुमार जब से इस सृष्टि पर मानव सभ्यता का आरम्भ हुआ तब से ही स्त्रियों ने समाज के विभिन्न क्षेत्रों में अपनी भुमिका है | सिन्धु सभ्यता के अवशेषों से हमें नृत्य करती स्त्री की मूर्ति प्राप्त हुई | इस मूर्ति को देख कर यह प्रतीत होता है कि उस समय से ही स्त्रियों को समाज ने नाच गान की अनुमति दे रखी थी | प्राचीन भारतीय समाज में स्त्रियों को पुरूषों के बराबर सम्मान दिया गया | प्राचीन भारतीय इतिहास में स्त्रियों को पुरूषों के समान समाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक क्षेत्र में बराबर का अधिकार मिला | वैदिक काल के समाज में स्त्री तथा पुरुष को एक समान माना क्योंकि दोनों ही एक दुसरे की पारिवारिक और सामाजिक जरूरतों को पुरा करते थे | ऋग्वैदिक काल में पुत्री को दुहित्ति नाम से सम्बोधित किया जाता था क्योंकि पुत्री गाय का दुध निकलने का कार्य करती थी , इस साक्ष्य से पता चलता है कि वैदिक समाज में पुत्री को विशेष स्थान दिया गया |1 जैसे जैसे समय का पहिया घुमता गया हमें उतरवैदिक समाज में ऐसी स्त्रियों को वर्णन मिला जो जीवन भर अविवाहित रहीं तथा उन्होंने शिक्षा के क्षेत्र में युद्धो, शास्त्रार्थो में भाग लिया | ऐसी ही एक स्त्री थी जिसका नाम गार्गी था जिसने विदेह के राजा जनक के विशाल यज्ञ में याज्ञवल्क्य को अपने शास्तार्थ से परेशान कर दिया | 2 जैन तथा बौद्ध काल में स्त्रियों की स्थिति काफी हद तक अच्छी रही, स्त्रियों को संघों में शामिल किया गया | प्राचीन भारतीय इतिहास में स्त्रियों ने एक लडकी के रूप में एक बहु के रूप में एक माँ के रूप में नारी शक्ति के रूप का परिचय दिया है |
राहुल कुमार स्त्री , दुहित्ति , मनुस्मृति , नियोग प्रथा ,द्रौपदी , आम्रपाली , कौटिल्य , सती प्रथा | Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 2 | March-April 2022 Article Preview
विभाग इतिहास, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय ,अमृतसर, भारत।
Date of Publication : 2022-03-30
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Manuscript Number : SHISRRJ22124
Publisher : Shauryam Research Institute
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