Manuscript Number : SHISRRJ225474
हठयोग में नादानुसंधान: एक परिचय
Authors(1) :-डाॅ. श्रीमती रेखा अग्रवाल हमारे जीवन में प्रत्येक कार्य करने के पीछे कोई न कोई लक्ष्य और उद्देश्य होते ही हैं। इसी कड़ी में हठयोग साधना के लक्ष्य को बताते हुए स्वामी स्वात्माराम बताते हैं कि इस “हठयोग साधना का उपदेश केवल राजयोग की प्राप्ति के लिए किया है”। अर्थात् हठयोग साधना का लक्ष्य केवल राजयोग की प्राप्ति करना है। योग के अन्तिम अंग अर्थात् नादानुसंधान का वर्णन हठप्रदीपिका के चैथे उपदेश में किया गया है। नादानुसंधान की कुल चार अवस्थाएँ कही गई है। जिनमें साधक को अलग- अलग प्रकार के नाद सुनाई पड़ते हैं। निष्पत्ति अवस्था को नादानुसंधान की सबसे उत्तम अवस्था माना गया है। इसी प्रकार स्वामी महेशानंद जी ने शिवसंहिता में नाद की चार अवस्थाएँ बताई है- आरंभ, घट, परिचय एवं निष्पत्ति ये उत्तरोत्तर क्रम से परिणत होती जाने वाली, साधक के शरीर, इंद्रियां, चित्त, अनुभूतियां आदि की श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम अवस्थाएं हैं। नाद के विषय में केवल हठयोग में ही नहीं अपितु उपनिषद् में भी कहा गया है। हठयोग प्रदीपिका ज्योत्सना में ब्रह्मानन्द ने काँसे के घण्टे की ध्वनि की गूँज को नाद कहा है तथा नाद का अंशरूप आत्मा ही कला है।
डाॅ. श्रीमती रेखा अग्रवाल हठयोग, नादानुसंधान, ध्वनि। Publication Details Published in : Volume 5 | Issue 3 | May-June 2022 Article Preview
अतिथि व्याख्याता, बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, मध्य प्रदेश।
Date of Publication : 2022-06-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 167-170
Manuscript Number : SHISRRJ225474
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ225474