Manuscript Number : SHISRRJ23611
भारतीय संस्कृति में तप (जैनधर्म के विशेष संदर्भ में)
Authors(2) :-डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज, सब्यसाची षड़ंगी शोधालेख-सार- तप भारतीय आचार की आध्यात्मिक शक्ति को उजागर करने का एक उपक्रम है। तप चेतना के ऊध्र्वारोहण की महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है। ‘तप’ शब्द में ज्ञान-विज्ञान का विकास निहित है। भारतीय संस्कृति में ही नहीं, मानवीय संस्कृति में भी जो कुछ भी शाश्वत, उदात्त और महत्त्वपूर्ण है, वह सब तप से ही संभूत हैं। तपस्या से चित्त निर्मल होता है क्योंकि मलिन चित्त में उपदेश के बीज अंकुरित नहीं हो सकते। अध्यात्म विद्या के पुष्प तपोनिष्ठ जीवन में ही खिलते हैं। तप की आभा प्राणीमात्र को जागरण का संदेश देती है। तप ही जीवन का आदर्श और व्यवहार का सौंदर्य प्रस्तुत करता है। मानव-जीवन में उत्तरोत्तर मानवीय गुणों का संवाहक, संरक्षक और संवर्धन तप के द्वारा ही संभव है। प्रस्तुत शोधालेख तीनों परम्पराओं में प्रचलित तपश्चर्या के महत्त्व के साथ ही जैन परम्परा में प्रचलित तप को विशेष रूप से व्याख्यायित करता है।
डाॅ. सत्यनारायण भारद्वाज तप, बाह्य तप, अभ्यान्तर तप, अनशन, ऊनोदरी, भिक्षावृत्ति, प्रायश्चित, विनय, वैयावृत्ति। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023 Article Preview
सहायक आचार्य, प्राकृत एवं संस्कृत विभाग, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, जिला-नागौर, राजस्थान, भारत।
सब्यसाची षड़ंगी
सहायक आचार्य, प्राकृत एवं संस्कृत विभाग, जैन विश्वभारती संस्थान, लाडनूं, जिला-नागौर, राजस्थान, भारत।
Date of Publication : 2023-01-30
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-07
Manuscript Number : SHISRRJ23611
Publisher : Shauryam Research Institute
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