Manuscript Number : SHISRRJ23619
जनजातियों का प्रकृति प्रेम
Authors(1) :-डाॅ0 शाहेदा सिद्दिकी जनजातीय समाज अलग किस्म का रहा है। उस समाज के लोकाचार की विधाएँ जंगलों-पहाड़ों और नदियों के साथ समेकित रही हैं। सामाजिक मान्यताएं, सांस्कृतिक समझ और आस्थाओं से जुड़ी संवेदनाएं किसी अन्य प्रकार की अवधारणाओं को पोसती हुई नजर आती हैं। उनकी सामाजिक प्रवृŸिा और उनका सांस्कृतिक झुकाव सामूहिकता को बढ़ावा देते हुए व्यक्ति से व्यक्ति को जोड़ने का विश्वास पैदा करने में समर्थ दिखता है। आदिवासी जीवनशैली में आबोहवा से लेकर अन्य तरह के प्राकृतिक अवयवों की बेहतरीन भूमिका प्रत्यक्ष तौर से देखी जा सकती है। पेड़ों की पूजा और सुसंगत तरीके से उन्हें काटने का अनुशासन जनजातीय समाज में युगों से है। इस बात को नयी पीढ़ी को समझना होगा। इस समाज की अनगिनत पीढ़ियों ने अपनी सोच, भावनाओं, जीवनशैली, अपने लोकाचार, जीवन-व्यवहार, धर्म, आस्थाओं और संस्कारों में प्रकृति को केंद्र में रखकर जिस कुदरत को बचाया है, उसे बचाकर रखना हमारा बुनियादी कर्तव्य है।
डाॅ0 शाहेदा सिद्दिकी सांस्कृतिक समझ, लोकाचार, लोकज्ञान, जीवनशैली, बुनियादी कर्तव्य आदि। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 1 | January-February 2023 Article Preview
प्राध्यापक (समाजशाó), शा0 ठाकुर रणमत सिंह, महाविद्यालय, रीवा, मध्य प्रदेश, भारत।
Date of Publication : 2023-01-15
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 61-66
Manuscript Number : SHISRRJ23619
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ23619