Manuscript Number : SHISRRJ236647
भारतीय दर्शन में योग की अवधारणा
Authors(1) :-डॉ. सुजीत कुमार भारतीय दर्शन में योग एक महत्त्वपूर्ण एवं व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो शारीरिक अभ्यास के साथ-साथ मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त करता है। योग का मूल उद्देश्य आत्म-साक्षात्कार और परमात्मा के साथ एकत्व की प्राप्ति है। योग से चित्तवृत्तियां नियंत्रित होती है। योग यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, और समाधि – के माध्यम से साधक को आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाता है। योग आत्मज्ञान और विवेक के मार्ग पर आधारित है। इसके अनुसार, ज्ञान के माध्यम से अज्ञानता को दूर कर आत्मसाक्षात्कार किया जाता है। यह परमतत्त्व के प्रति पूर्ण भक्ति और समर्पण पर केन्द्रित है। इसके माध्यम से साधक अपनी आत्मा को परमात्मा के साथ जोड़ता है। योग निष्काम कर्म के सिद्धांत पर आधारित है। इसका उद्देश्य व्यक्ति को कर्म- बंधनों से मुक्त कर, उसे आत्म-साक्षात्कार की ओर ले जाना है। योग, भारतीय दार्शनिक परम्पराओं जैसे सांख्य, वेदान्त, न्याय वैशेषिक आदि अन्य विचारधाराओं में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। यह व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक विकास को संतुलित करने का एक साधन है, जिसका अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति है।
डॉ. सुजीत कुमार आस्तिक एवं नास्तिक, वैदिक तथा अवैदिक, आत्म-साक्षात्कार, अपवर्ग, आर्य सत्य, त्रिरत्न, परमतत्त्व, निष्काम कर्म, प्रमेयमीमांसा, प्रमाणमीमांसा, सविकल्पक बुद्धि, निर्विकल्पक प्रज्ञा, त्रिशिक्षा, निश्रेयस् , अपवर्ग, मोक्ष, पुरुष, प्रकृति, ज्ञ, ऐकान्तिक एवं आत्यन्तिक, कैवल्य। Publication Details Published in : Volume 6 | Issue 6 | November-December 2023 Article Preview
असि. प्रोफसर, संस्कृत-विभाग, कर्मक्षेत्र स्नातकोत्तर महाविद्यालय, इटावा, उत्तर-प्रदेश, भारत
Date of Publication : 2023-11-21
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 299-306
Manuscript Number : SHISRRJ236647
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ236647