Manuscript Number : SHISRRJ2472126
भारतीय ज्ञान परंपरा में योग एवं नारी
Authors(1) :-डा. कैलाश चन्द मीणा प्रस्तुत पत्र में भारतीय ज्ञान परंपरा में योग एवं नारी की अवधारणा स्वरूप एवं विभिन्न दृष्टिकोणों के बारे में व्यापक वर्णन क्या जा रहा है भारतीय ज्ञान परंपरा में योग को भारत की सबसे बड़ी देन विश्वभर में मानी जा रही है। जिस प्रकार शून्य के आधार पर आधुनिक विज्ञान स्थापित हुआ उसी तरह आधुनिक जीवन का आधार भी योग बनता जा रहा है। आज विश्व पटल पर बढ़ता हुआ योग भारतीय ज्ञान परंपरा की विजय है । गीता के “ समत्वं योग उच्चते” वाले समत्व भाव से जीने की प्रेरणा हमें योग ही दे रहा है। तथा योग आध्यात्मिक साधना का संचेतना का केंद्र रहा है। योग को सभी परंपराओं में अपनाया है तथा इसका महत्व भारतीय ज्ञान परंपरा में सदा से रहा है। नारी जीवन का प्रथम सोपान कन्या है, वैदिक काल में पुत्र के समान मंगलकारी कन्या को समझा जाता था नवरात्रा में नवदुर्गा का प्रतीक मानकर पूजा की जाती थी , नारी पद नर से ही उत्पन्न होता है नर और नारी जीवन रथ के दो पहिए हैं किसी एक को प्रथम स्थान पर बताकर दूसरे को गौण कहा ही नहीं जा सकता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं, अर्धनारीश्वर ईश्वर के रूप में नर और नारी दोनों के समान अंश बताए गए हैं। विवाह के बाद ही कन्या नारी पद से जानी जाती है, नारी पद के पर्याय स्त्री, मेंना ,जाया, सुंदरी, दंपत्ति, पत्नी आदि वैदिक काल में नारियों की सामाजिक तथा सर्वविधिक दशाओं की दृष्टि से स्वर्णिम काल रहा है। विभिन्न संवाद सूक्तों जैसे शर्मा – पाणी , यमी- यमी , विश्वामित्र – नदी आदि से स्पष्ट पता चलता है कि वैदिक काल में स्त्रियों भी परम विदुषी होती थी । नारी अपनी इच्छा से वर का वरण करती थी । माता-पिता के अनुमति से गांधर्व विवाह की अनुमति पाती थी । पत्नी को गृह की सामग्री कहा जाता था । यास्क ने देवर पद का निर्वचन “द्वितीयो वर उच्यते” ऋग्वेद में विश्वला जैसी कुशल योद्धा नारी इस बात का उदाहरण है कि स्त्रियों को युद्ध में भाग लेने का अधिकार भी प्राप्त था । धार्मिक कार्य स्त्रियों के बिना कभी पूर्ण नहीं होता था यज्ञादि अनुष्ठान में अग्नि प्रज्वलन भी जोड़े से ही करने का विधान था, सामाजिक समारोहों में भी पति पत्नी दोनों एक साथ सम्मिलित होते थे, पुरुष के समान उपनयन संस्कार करवाकर नारी भी वेदाध्ययन की अधिकरणी थी। “पुं नामक नरकात त्रायत इति पुत्र:” इस धारणा के कारण पुत्र प्राप्ति की अभिलाषा अधिक थी तथापि नारी को सम्मानित स्थान प्राप्त था ।
डा. कैलाश चन्द मीणा भारतीय ज्ञान परम्परा, योग, दर्शन, अष्टांग, चित्त, कन्या, अर्धनारीश्वर, विवाह, नारी । Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 2 | March-April 2024 Article Preview
सहायक प्रोफ़ेसर, शिक्षापीठ, श्री ला.ब.शा. रा. संस्कृत विश्वविद्यालय,नई दिल्ली।
Date of Publication : 2024-03-15
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Page(s) : 41-48
Manuscript Number : SHISRRJ2472126
Publisher : Shauryam Research Institute
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