Manuscript Number : SHISRRJ24751
हिंदी में समलैंगिक एवं किन्नर साहित्य
Authors(1) :-संजय कुमार यादव यदि बात की जाए हिंदी साहित्य के इतिहास की, तो इसमें साहित्य के पढ़ने से पूर्व ही इतिहास अपना परिचय देते हुए स्पष्ट रूप से संकेत दे देता है कि साहित्य जनता और समाज का प्रतिबिंब है, जिसमें समाज में हो रही घटनाओं की छाप देखने को मिलती है। लेकिन अगर गहराई से बात की जाए, तो हमारा साहित्य अपनी साहित्यिक प्रवृत्तियों की दृष्टि से नारीवाद, आदिवासी, अल्पसंख्यक और दलित विमर्श के सैद्धांतिक ढांचे में बंधा हुआ दिखाई देता है। इनके अलावा, हमारे समाज में एक तीसरा समुदाय भी है, जिसे समाज में प्राचीन समय से उपस्थित होने के बाद भी बड़ी चालाकी के साथ समाज से अलग कर उनके अस्तित्व को कोई महत्व न देकर नकार दिया जाता है। परंतु स्वयं को सभ्य और समाज हितैषी समझने वालों ने भी उन्हें कभी नहीं अपनाया, बल्कि उनकी पीड़ा को समझे बिना हर कदम पर उनका मजाक बनाया गया।
संजय कुमार यादव हिंदी साहित्य, इतिहास, प्राचीन समय Publication Details Published in : Volume 7 | Issue 5 | September-October 2024 Article Preview
Researcher, Haryana, India
Date of Publication : 2024-10-25
License: This work is licensed under a Creative Commons Attribution 4.0 International License.
Page(s) : 01-06
Manuscript Number : SHISRRJ24751
Publisher : Shauryam Research Institute
URL : https://shisrrj.com/SHISRRJ24751